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सो (ख) तत्पश्चात् सामानिक परिषद् के देवों ने व्यवसाय सभा में रखा पुस्तकरत्न a सूर्याभदेव के समक्ष रखा। सूर्याभदेव ने उस पुस्तकरत्न को हाथ मे लेकर खोला, खोलकर
बाँचा। बाँचकर धर्मानुगत-धार्मिक कार्य करने का निश्चय किया। फिर वापस पुस्तकरत्न को यथास्थान रख दिया। फिर सिंहासन से उठा एवं व्यवसाय सभा के पूर्व दिग्वर्ती द्वार से बाहर निकलकर नन्दा पुष्करिणी के पास आया। आकर पूर्व दिग्वर्ती तोरण और त्रिसोपान
पक्ति-(तीन सीढियों) से नन्दा पुष्करिणी मे उतरा। हाथ-पैर धोये। हाथ-पैर धोकर और o आचमन-(कुल्ला) कर पूर्ण रूप से स्वच्छ और परम शुद्ध होकर मत्त गजराज की मुखाकृति
जैसी एक विशाल श्वेत-धवल रजतमय जल से भरी हुई भंगार (झारी) हाथ में ली। वहाँ के उत्पल यावत् शतपत्र-सहस्रपत्र कमल हाथ मे लिये। फिर नन्दा पुष्करिणी से बाहर निकलकर सिद्धायतन की ओर चलने के लिए कदम बढाया। STUDY OF PUSTAK RATNA
(b) Thereafter, the gods of Saamanik council placed jewel-like book of Suryabh gods which deals with the ethics of the gods (Pustak Ratna). Suryabh Dev took that book in his hand, opened and went through it. Thereafter, he decided to perform religious functions as mentioned therein. He then placed Pustak Ratna at its assigned place. He then got up from his seat, came out from the library through the exit in the east. He then came to Nanda pushkarni (lake). He came down from festoons in the east and three ** stairs. He washed his hands and feet. He then cleaned his mouth well with water and after he became completely neat and clean, he took a large white silvery jar full of water in his hand. The jar was like face of an elephant. He then took utpal, hundred-leaved and thousand-leaved lotuses, in his hand. He then came out of Nanda lake and started towards the eternal temple (Siddhayatan).
विवेचन-इस वर्णन से पता चलता है कि आभूषणो और परिधानो-पोशाको के डिजायन और कलात्मक निर्माण की आश्चर्यजनक विधि उस युग मे प्रचलित थी। शरीर प्रसाधन मे फूलो की माला
और सुगन्धित चूर्ण (पाउडर) आदि का उपयोग होता था। ___ व्यवसाय सभा का अर्थ कार्य-सचालन करने का केन्द्र (कार्यालय) भी होता है। परन्तु यहाँ पर प्रसगानुसार इसका अर्थ पुस्तकालय या ग्रन्थागार है। इस पुस्तक मे स्वर्ग में उत्पन्न देवताओ के
कर्त्तव्य-मर्यादा आचार विधि का वर्णन रहता है। व्यवसाय सभा मे प्रवेश के समय उसकी परिक्रमा १ करना, उस स्थान के प्रति आदरभाव प्रकट करना है। इन प्रसगो मे स्वर्गीय देवो का शिष्टाचार व्यवहार ॐ विशेष ध्यान देने योग्य है।
eksikse.ke.ke.sakse.ke.ske.sie.ke.skeske.ke.ke.ke.desse.skeke.ske.sale.ke.slese.ske.skskskskot
सूर्याभ वर्णन
(209)
Description of Suryabh Deve
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