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जैन सूत्रो व अन्य ग्रन्थों मे इस प्रकार की वर्णन शैली प्रचलित रही है कि कर्मफल देखकर कर्म के विषय मे जिज्ञासा होती है। कर्म अज्ञात रहता है। अतः उसके विषय मे सर्वज्ञ ज्ञानी पुरुष ही समाधान दे सकते है।
इस सूत्र मे तीन शब्द आये है देवर्द्धि, देवद्युति और देवानुभव। टीकाकार के अनुसार इनका इस प्रकार
ॐ अर्थ है
देवर्द्धि-देवरूप सम्बन्धी ऋद्धि । स्थानागसूत्र में देवऋद्धि तीन प्रकार की बताई है-(१) विमान-ऋद्धि, (२) वैक्रिय-ऋद्धि, (३) परिचारणा (काम) ऋद्धि। इसका भाव है, विमानो का विस्तार व वैभव वैक्रिय
शक्ति की विलक्षण सामर्थ्य और देवियों का विशाल परिवार तथा उनके साथ मन इच्छित भोग की * सामर्थ्य । ये तीन देवऋद्धि कही जाती है। * देवयुति का अर्थ है-देवताओ के शरीर का सौन्दर्य और तेज, उस पर पहने वस्त्र, आभूषण आदि
की चमक-दीप्ति देवद्युति है।
देवानुभव का अर्थ है-बल, चतुरगिनी सेना, वाहन, यान आदि, कोष-स्वर्ण-रत्न की सम्पदा, दिव्य * शस्त्र आदि के कारण देवताओ का प्रभाव तेज विशिष्ट प्रकार का हो जाता है।
___Elaboration-The birth, the prosperity, the wealth, the strength, the influence and suchlike of Suryabh god have been earlier mentioned. Further, in the earlier aphorisms, the arrival of Suryabh with his grotesque grandeur, the presentation of divine music and dance in the Samavasaran (the lecture hall) of Bhagavan Mahavir and the traditional conduct and customary activities in the heavenly abode have been described in a picturesque manner. The primary aim of the authors of scriptures in the entire description has now been depiction in the form of a query by Gautam Swami wherein he has asked which previous auspicious karma or good spiritual conduct has resulted in this divine splendour.
This question concentrates mainly on four points-(1) What charity of the highest order was undertaken ? (2) What austerity or self-control of extreme type was observed ? (3) What pure conduct and mental outlook was followed ? (4) What scriptural discourse was listened to from saints and teachers (gurus) that fruitified in providing him (Suryabh god) such
a divine splendour ? In reply to the question of Gautam Swami, * Bhagavan Mahavir narrated detailed account of the earlier life of
Suryabh Dev. to think In Jain scriptures and other sacred book, the style of narration is such
that on seeing the fruit of karma (past actions), query arises about सूर्याभ वर्णन
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Description of Suryabh Deve
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