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तिसोवाणपडिरूवए सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, दिवाए दगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं. पुष्फारुहणं आसत्तोसत्त. धूवं दलयति।
सिद्धाययणं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति तं चेव, जेणेव उत्तरिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छति, जेणेव उत्तरिल्ले चेइयथूभे तहेव, जेणेव पञ्चत्थिमिल्ला पेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा तं चेव।
(घ) इसके पश्चात् जहाँ पश्चिम दिशा की मणिपीठिका के पास विराजमान जिन-प्रतिमा थी, वहाँ आकर प्रमार्जनादि कार्य किये, धूप आदि सब कार्य सम्पन्न किये। इसके बाद उत्तर दिशावर्ती मणिपीठिका और जिन-प्रतिमा के पास आया। वहाँ भी धूपक्षेप पर्यन्त सब कार्य किये। इसके पश्चात् जहाँ पूर्व दिशावर्ती मणिपीठिका थी तथा पूर्व दिशा मे स्थापित जिन-प्रतिमा थी, वहाँ आया। वहाँ आकर पूर्ववत् प्रमार्जन करना आदि धूप जलाने पर्यन्त सब कार्य किये। इसके बाद जहाँ दक्षिण दिशा की मणिपीठिका और दक्षिण दिशावर्ती जिन-प्रतिमा थी, वहाँ आया और पूर्ववत् धूप जलाने तक सब कार्य किये।।
इसके पश्चात् दक्षिण दिशावर्ती चैत्यवृक्ष के पास आया। वहाँ आकर भी पूर्ववत् प्रमार्जनादि सब कार्य किये। इसके बाद जहाँ माहेन्द्रध्वज था, दक्षिण दिशा की नंदा पुष्करिणी थी, वहाँ आया। आकर मोरपीछी को हाथ में लिया और फिर तोरणों, त्रिसोपानो, काष्ठपुतलियों और सर्परूपको को मोरपीछी से पोंछा, दिव्य जलधारा सींची, सरस गोशीर्ष चंदन का लेप किया, पुष्प चढाये, पुष्पमालाओ से विभूषित किया और धूपक्षेप किया।
फिर सिद्धायतन की प्रदक्षिणा करके उत्तर दिशा की नदा पुष्करिणी पर आया। वहाँ पर भी धूपक्षेप आदि कार्य किये। इसके बाद उत्तर दिशावर्ती चैत्यवृक्ष और चैत्य-स्तम्भ के पास * आया। पूर्ववत् प्रमार्जन आदि कार्य किये। इसके पश्चात् जहाँ पश्चिम दिशावर्ती मणिपीठिका
पर स्थापित प्रतिमा थी, वहाँ आया। वहाँ आकर भी पूर्ववत् धूपक्षेप आदि करके योग्य र कार्य किये।
(d) He then came to the idol of the Tirthankar seated on gemmed-seat in the south, cleaned it, burnt incense and did all such activities as mentioned earlier. Thereafter, he came to gemmed-seat in the north and the idol of Tirthankar thereon. There also he
repeated all the above activities including burning of incense. * Thereafter he came to the gemmed-table in the east and the idol of
Tirthankar thereon. He then cleaned it and repeated all the
activities upto burning of incense. Later, he came to the gemmed* रायपसेणियसूत्र
Rai-paseniya Sutra
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