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तासि णं उवरि पत्तेयं पत्तेयं थूभे पण्णत्ते। ते णं थूमा सोलस सोलस जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस सोलस जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, सेया संखंक सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं थूभाणं उवरिं अट्ठ मंगलगा, झया छत्तातिछत्ता जाव सहस्सपत्तहत्थया।
तेसि णं थूभाणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसिं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, - सबमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ।
तासि णं मणिपेढियाणं उवरिं चत्तारि जिणपडिमाओ जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ a संपलियंकनिसन्नाओ, थूभाभिमुहीओ सन्निक्खित्ताओ चिटुंति, तं जहा-उसभा, वद्धमाणा, चंदाणणा, वारिसेणा।
१६६. उन प्रेक्षागृह मंडपों के आगे एक-एक मणिपीठिका (रत्नमय चौकी) है। ये मणिपीठिकाएँ सोलह-सोलह योजन लम्बी-चौड़ी, आठ योजन मोटी है। ये सभी सम्पूर्ण ॐ मणि-रत्नमय, स्फटिक मणि के समान निर्मल और प्रतिरूप हैं।
उन प्रत्येक मणिपीठों के ऊपर असाधारण रमणीय स्तूप बने हैं। वे सोलह-सोलह योजन लम्बे-चौड़े, समचौरस और ऊँचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊँचे हैं। शंख व अंक रत्न के समान श्वेत, सर्वात्मना रत्नों से बने हुए स्वच्छ यावत् देखने योग्य हैं।
उन स्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजाये, छत्र पर छत्र यावत् सहस्रपत्र कमलों के झुमके सुशोभित हो रहे हैं।
उन स्तूपों की चारो दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका है। ये प्रत्येक मणिपीठिकाएँ आठ * योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और अनेक प्रकार के मणि-रत्नों से निर्मित, निर्मल * यावत् प्रतिरूप हैं।
प्रत्येक मणिपीठिका के ऊपर, स्तूपों के सामने मुख वाली ऐसी जिनोत्सेध प्रमाण वाली (ऊँचाई में जिन-भगवान के शरीर प्रमाण) चार जिन-प्रतिमाएँ पर्यंकासन से विराजमान हैं, यथा-(१) ऋषभ (भरत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर), (२) वर्धमान (भरत क्षेत्र के अन्तिम तीर्थंकर), (३) चन्द्रानन (इस अवसर्पिणी काल मे जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर), तथा (४) वारिषेण (जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में इसी अवसर्पिणी काल में हुए चौबीसवें तीर्थंकर)।
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र रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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