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इसके पूठे रिष्ट (काले) रत्न के हैं। डोरा स्वर्णमय है | गाँठें विविध मणियों की हैं। पत्र रत्नमय है। लिप्यासन -(दवात) वैडूर्यरत्न की है । उसका ढक्कन रिष्ट रत्नों का है। सॉ तपनीय स्वर्ण की बनी हुई है। रिष्ट रत्न से बनी हुई स्याही है । वज्र रत्न की लेखनी - कलम है । रिष्ट रत्नमय अक्षर है और उसमें धार्मिक लेख लिखे हैं ।
व्यवसाय सभा का ऊपरी भाग आठ-आठ मगल आदि से सुशोभित हो रहा है।
उस व्यवसाय सभा मे उत्तर - -पूर्व दिग्भाग में एक नन्दा पुष्करिणी है। ह्रद के समान इस नन्दा पुष्करिणी का वर्णन जानना चाहिए।
उस नन्दा पुष्करिणी के ईशानकोण में रत्नमय, निर्मल एक विशाल बलिपीठ (बलि कर्म करने का स्थान - विशेष ) बना है।
THE GREAT BOOK AND NANDA PUSHKARNI
185. In the library, there is the great and best book of Suryabh Dev Its description is as under
Its cover is of Risht (black) jewels. The thread is of gold. The knots are of gems of various types. Its leaves are of jewels. The inkpot is of Vaidurya gems. The cover is of Risht (black) gems. The handle is of heated gold. The ink is of Risht (black) gems. The pen is of Vajra gem. The words are of black gems and writings relating to philosophical types are in it.
The upper part of the library has eight auspicious symbols.
In the north of that library, there is a lake ( Nanda Pushkarni). The description of this Nanda Pushkarni is similar to that of lake.
In the north-east of Nanda Pushkarni, there is a jewelled, neat and large seat of Suryabh Dev for offerings.
उपपात के पश्चात् सूर्याभदेव का चिन्तन
१८६. तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पत्तीए पजत्तीभावं गच्छइ, तं जहा - आहारपज्जत्तीए, सरीरपजत्तीए, इंदियपत्ती, आणपाणपज्जत्तीए, भासा - मणपज्जत्तीए ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाएं पत्तीए पत्तीभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए, मणोगए संकप्पे समुपखित्था - किं मे पुब्बिं
सूर्याभ वर्णन
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Description of Suryabh Dev
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