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करणिजं ? किं मे पच्छा करणिचं ? किं मे पुव्विं सेयं ? किं मे पच्छा सेयं ? किं मे पुट्विं पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ?
१८६. उस काल और समय मे तत्काल उत्पन्न होकर वह सूर्याभदेव (१) आहार पर्याप्ति, (२) शरीर पर्याप्ति, (३) इन्द्रिय पर्याप्ति, (४) श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, और (५) भाषा
मनःपर्याप्ति-इन पाँच पर्याप्तियों से पर्याप्त अवस्था को प्राप्त हुआ। ____ पाँच प्रकार की पर्याप्तियो से पर्याप्त भाव को प्राप्त होने के पश्चात् उस सूर्याभदेव को इस
प्रकार का विचार, चिन्तन, अभिलाषा, मनोगत एवं संकल्प उत्पन्न हुआ कि मुझे पहले क्या करना चाहिए और उसके बाद क्या करना चाहिए, मुझे पहले क्या करना कल्याणकर है
और बाद में क्या करना उचित है? तथा पहले भी और पश्चात् भी क्या करना योग्य है जो मेरे हित के लिए, सुख के लिए, क्षेम के लिए, कल्याण के लिए और अनुगामी रूप से (अगले जन्म के लिए) शुभानुबध का कारण होगा? THOUGHTS OF SURYABH DEV AFTER HIS BIRTH ____186. In that period at that time, Suryabh Dev in a short span Suryabh Dev completed (1) the process of taking of food, (2) their formation of his body, (3) the formation of sense-organs, (4) the exhaling and inhaling breathing process, and (5) the speaking-cumthinking characteristic, all the five processes for completion of a celestial being.
Thereafter, Suryabh Dev started thinking, meditating, brooding, pondering over and deciding what he should do first and what thereafter, performance of which act first is beneficial to him and what should be done later ? He also thought on what is proper for him to do first, what is in his interest, what is beneficial for him, what is for his welfare and what is going to be beneficial for him in the next life?
विवेचन-इस सूत्र मे सूर्याभदेव के उत्पन्न होते ही अन्तर्मुहूर्त मे पर्याप्ति-सम्पन्न होने की चर्चा है। पर्याप्ति क्या है, कितनी है ? इस सम्बन्ध मे सलग्न विवेचन उपयोगी होगा___ 'पर्याप्ति' जैनदर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है-आत्मा की विशिष्ट शक्ति की परिपूर्णता। इस विशिष्ट शक्ति के द्वारा जीव आहार-शरीरादि के योग्य पुद्गलो को ग्रहण करके उन्हे आहारादि के रूप मे बदलता है। यह पर्याप्ति शक्ति पुद्गलो के उपचय से मिलती है। जब कोई जीव पुराना शरीर छोडकर नया शरीर धारण करता है तो उसके जीवन यापन के लिए कुछ आवश्यक पौद्गलिक सामग्री की आवश्यकता होती है। इस पौद्गलिक सामग्री का निर्माण जीव जिस विशिष्ट शक्ति के द्वारा
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रायपसेणियसूत्र
(180)
Raz-paseniya Sutra
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