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एवं खलु देवाणुप्पियाणं सूरियाभे विमाणे सिद्धायतणंसि जिणपडिमाणं जिणस्सेहपमाणमित्ताणं अट्ठसयं संनिक्खित्तं चिट्ठति, सभाए णं सुहम्माए माणवए चेयखंभे वइरामएस गोलबट्टसमुग्गएसु बहूओ जिणसकहाओ संनिक्खित्ताओ चिति, ताओ णं देवाणुप्पियाणं अण्णेसिं च बहूणं वेमाणियाणं देवाणं य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव पवासणिजाओ।
तं एवं णं देवाणुप्पियाणं पुव्विं करणिजं, तं एवं णं देवाणुप्पियाणं पच्छा करणिज्जं । तं एवं णं देवाप्पियाणं पुव्विं सेयं तं एवं णं देवाणुप्पियाणं पच्छा सेयं । तं एवं णं देवाप्पिया पिपच्छा वि हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेयसाए, आणुगामियत्ताए भविस्सति ।
१८७. तत्पश्चात् उस सूर्याभदेव की सामानिक परिषद् के देव सूर्याभदेव के इस मनोगत विचार यावत् सकल्प को अच्छी तरह से जानकर सूर्याभदेव के पास आये और दोनो हाथ जोड आवर्त्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके जय-विजय शब्दों से सूर्याभदेव का अभिनन्दन किया, फिर इस प्रकार कहा
"आप देवानुप्रिय के सूर्याभ विमान स्थित सिद्धायतन मे जिन- शरीर के प्रमाण वाली एक सौ आठ जिन-प्रतिमाएँ विराजमान हैं तथा सुधर्मा सभा के माणवक - चैत्य-स्तम्भ में वज्र रत्नमय गोल समुद्गकों (डिब्बों) में बहुत-सी जिन-अस्थियाँ व्यवस्थित रूप से रखी हुई है। वे आप देवानुप्रिय तथा दूसरे भी बहुत से वैमानिक देवो एवं देवियो के लिए अर्चनीय यावत् पर्युपासनीय है।
अतएव आप देवानुप्रिय के लिए उनकी पर्युपासना करने रूप कार्य पहले करने योग्य है और यही कार्य पीछे करने योग्य है। आप देवानुप्रिय के लिए यह पहले भी श्रेय रूप है और बाद मे भी यही श्रेय रूप है। यही कार्य आप देवानुप्रिय के लिए पहले और पीछे भी हितकर, सुखप्रद, क्षेमकर, कल्याणकर एवं परम्परा से सुख का साधन रूप होगा।"
POINTING OF NECESSARY DUTY BY GODS OF EQUAL STATUS (SAAMANIK DEV)
187. Thereafter, the gods of equal status belonging to the Saamanik cabinet, knowing the thoughts of Suryabh Dev, fully well, came to him, folded their hands, in respect, went round him, greeted him with words praying for his success and then said
“O loveable of gods ! There are 108 idols of Thirthankar, each equal in the bright of respective Thirthankar in the external temple existing in Suryabh Viman. Further in the round boxes of the
रायसेणियसूत्र
Rai-paseniya Sutra
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