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जेणेव हरिवास - रम्मगवासाइं जेणेव हरिकंत - नारिकंताओ महाणईओ, तेणेव उवागच्छंति तहेव, जेणेव गंधावाइ - मालवंतपरियाया वट्टवेयड्डपव्वया तेणेव तहेव ।
जेणेव सिढ - णीलवंतवासधरपव्वया तहेव, जेणेव तिगिच्छ - केसरिद्दहाओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तहेव ।
(४) इसके पश्चात् हैमवत और ऐरण्यवत क्षेत्र पर पहुँचे। वहाँ से उन दोनों क्षेत्रों की रोहित, रोहितांसा तथा स्वर्णकूला और रुप्यकूला महानदियों का जल भरा तथा नदियों के दोनो तो की मिट्टी ली। जल और मिट्टी लेने के पश्चात् जहाँ शब्दापाति, विकटापाति वृत्त वैताढ्य पर्वत थे, वहाँ आये । वहाँ से समस्त ऋतुओं के उत्तमोत्तम पुष्प आदि लिये ।
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वहाँ से वे महाहिमवत और रुक्मि वर्षधर पर्वत पर आये और वहाँ से जल एवं पुष्प आदि लिये, फिर जहाँ महापद्म और महापुण्डरीक द्रह थे, वहाँ आये । द्रह का जल एवं कमल आदि लिये।
तत्पश्चात् जहाँ हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष क्षेत्र थे, हरिकाता और नारिकांता महानदियाँ थीं, गंधापाति, माल्यवत और वृत्तवैताढ्य पर्वत थे, वहाँ आये और इन सभी स्थानों से जल, मिट्टी, औषधियाँ एवं पुष्प लिये ।
इसके बाद जहाँ निषध, नील नामक वर्षधर पर्वत थे, जहाँ तिगिंछ और केसरी द्रह थे, वहाॅ आये, वहाँ से उसी प्रकार जल आदि लिया ।
(4) Thereafter, they came to Haimvant and Airanyavat areas. They took the water of Rohit and Rohitansa rivers and also of Swarnkoola and Rupyakoola rivers and the earth from both the banks of each river. Thereafter, they came to Shabdapati and Vikatapati round Vaitadhya mountains and took flowers and suchlike from there belonging to all the seasons.
They then came to Maha-himvant and Rukmi Varshdhar mountains and took water and flowers from there. They then came to Maha-padma and Maha-pundreek lakes. They took water and lotus from those lakes.
They then came to Harivarsh-Ramyakvarsh areas, Harikanta and Naarikanta rivers, Gandhapati, Malyavant and VrittVaitadhiya mountains. They took water, earth, corn and flowers from all such places.
सूर्याभ वर्णन
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