________________
*
" *
On that board, there are many Vajra pegs; many silver swings are hanging on those pegs. Vajra round boxes are in those swings The bones of Tirthankaras are safely preserved in those boxes.
Those boxes are worthy of worship for Suryabh Dev and other gods and goddesses and also fit to be adored.
On that post, there are eight auspicious symbols, flags and umbrellas one above the other.
विवेचन-सूत्र १६६ मे मणिपीठिका पर जिनेश्वरदेव की चार जिन-प्रतिमाएँ पर्यकासन से विराजमान होने का उल्लेख है। सूत्र १६७ मे चैत्य वृक्ष का, सूत्र १७४ मे माणवक नामक चैत्य-स्तम्भ का और उस चैत्य-स्तम्भ पर लटकते हुए रत्नमय गोल डिब्बो मे जिन-अस्थियाँ रखी होने का वर्णन है। इसी प्रकार सूत्र १७७-१७८ मे सिद्धायतन का वर्णन है।
चैत्य वृक्ष का अर्थ हम सूत्र १६७ के विवेचन मे कर चुके है। विद्वानो ने 'चैत्य' शब्द के अर्थ अपनी-अपनी परम्परागत धारणाओ के अनुसार भिन्न-भिन्न किये है। किसी ने चैत्य का अर्थ पूजनीयवदनीय किया है तो किसी ने चित्त को प्रसन्न करने वाला अथवा 'किसी चिता से सम्बन्धित' अर्थ भी किया है। जिन-प्रतिमा और जिन-अस्थियो के सम्बन्ध मे शाब्दिक भेद नही है। किन्तु मूर्तिपूजक परम्परा के अनुसार वे वन्दनीय-पूजनीय मानी जाती है जबकि अमूर्तिपूजक परम्परा स्वर्ग के देवताओ का एक जीताचार, परम्परागत व्यवहार मात्र मानती है। स्वर्ग मे उत्पन्न होने वाला देवता अपनी परम्परा व मर्यादा का गौरव रखने तथा अपने वीतरागदेव के प्रति श्रद्धा और आदरभाव प्रगट करने के लिए इस परम्परा का पालन करते है। अमूर्तिपूजक मान्यता है कि स्वर्ग मे ये शाश्वत प्रतिमाएँ तो है परन्तु उनका वर्णन विमान के अन्य अगो की तरह वर्णन-शैली का एक अग मात्र है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनकी पूजा-अर्चना करने से देवताओ का कल्याण होता होगा। इसलिए मूर्तिपूजा-समर्थक और मूर्तिपूजाविरोधी दोनो ही इनका अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार भिन्न-भिन्न अर्थ करते है।
Elaboration—In aphorism 166, there is description of existence of four statues of Tirthankaras in cross-legged posture on the platforms studded with gems In aphorism 167, there is description of memorial tree, in aphorism 174 that of memorial post and the round boxes containing remains of the Turthankaras in the swings hanging from that post Similarly in aphorism 177-178, there is description of Siddhayatan
We have explained the meaning of memorial tree (Chaitya Vriksh) in the elaboration of aphorism 167 The scholars have interpreted the words 'Chaitya' differently according to their traditional approach Some have interpreted it as worthy of worship, some have interpreted it as pleasant to the heart while some have related it to the burning pyre There is no confusion in interpretive of the words Jin-pratima (the statue of Tirthankar) are Jin-asthies (the remains of Tirthankar) But according to
*
सूर्याभ वर्णन
(167)
Description of Suryabh Deu
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org