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१७९. (क) तासि णं जिणपडिमाणं पिट्ठतो पत्तेयं पत्तेयं छत्तधारगपडिमाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं छत्तधारगपडिमाओ हिम-रमय-कुंदेंदुष्पगासाई, सकोरंटमल्लदामधवलाइं आयवत्ताई सलीलं धारेमाणीओ धारेमाणीओ चिट्ठति।
(ख) तासि णं जिणपडिमाणं उभओ पासे पत्तेयं पत्तेयं चामरधारग पडिमाओ
पण्णत्ताओ। ताओ णं चामर धारगपडिमाओ चंदप्पह वयर वेरुलिय नानामणिरयणखचिय " चित्तदंडाओ सुहुमरयत-दीहवालाओ संखंककुंद-दगरय-अमतमहियफेणपुंजसन्निकासाओ धवलाओ चामराओ सलीलं धारेमाणीओ चिटुंति।
(ग) तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो दो-दो नागपडिमाओ जक्खपडिमाओ, भूयपडिमाओ, कुंडधारपडिमाओ सब्बरयणामईओ अच्छाओ जाव चिटुंति।
(घ) तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो अट्ठसयं घंटाणं, अट्ठसयं चंदणकलसाणं, अट्ठसयं भिंगाराणं एवं आयंसाणं, थालाणं पाईणं सुपइट्ठाणं, मणोगुलियाणं वायकरगाणं, चित्तगराणं .रयणकरंडगाणं, हयकंठाणं जाव उसभकंठाणं, पुप्फचंगेरीणं जाव
लोमहत्थचंगेरीणं, पुप्फपडलगाणं तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं, अट्ठसयं झयाणं, * अट्ठसयं धूवकडुच्छयाणं संनिक्खित्तं चिट्ठति।
(ङ) सिद्धायतणस्स णं उवरिं अट्ठ मंगलगा, झया छत्तातिछत्ता।
१७९. (क) उन जिन-प्रतिमाओं में से प्रत्येक प्रतिमा के पीछे एक-एक छत्रधारकछत्र लिए खडी देवियों की प्रतिमाएँ है। वे छत्रधारक प्रतिमाएँ लीला करती हुई-सी भावभंगिमापूर्वक हिम, रजत, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान प्रभा-काति वाले श्वेत कोरट पुष्पों की मालाओं से युक्त धवल-श्वेत आतपत्रो (छत्रो) को अपने-अपने हाथो में धारण किए हुए खड़ी हैं।
(ख) प्रत्येक जिन-प्रतिमा के दोनो बाजुओ में एक-एक चामरधारक प्रतिमाएँ हैं। वे चामरधारक प्रतिमाएँ अपने-अपने हाथों में विविध मणि-रत्नो से रचित चित्रामों से युक्त चन्द्रकान्त, वज्र और वैडूर्य मणियो की डडियो वाले, पतले, रजत जैसे श्वेत लम्बे-लम्बे बालो वाले, शख, अक रल, कुन्दपुष्प, जलकण, रजत और मन्थन किए हुए अमृत के फेन
समान श्वेत-धवल चामरों को धारण करके लीलापूर्वक बींजती हुई-सी खड़ी हैं। ॐ (ग) उन जिन-प्रतिमाओं के आगे दो-दो नाग-प्रतिमाएँ, यक्ष-प्रतिमाएँ, भूत-प्रतिमाएँ, ॐ कुंड (पात्र-विशेष) धारक प्रतिमाएँ खडी हैं। ये सभी प्रतिमाएँ रत्नमय अनुपम शोभा से * सम्पन्न है।
रायपसेणियसूत्र
(174)
Raz-paseniya Sutrax
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