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तेसि णं चेइयरुक्खाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा
वयरामयमूल-रययसुपइट्ठियविडिमा, रिट्ठामयविउल कंदवेरुलियरुइलखंधा, सुजायवरजायसवपढमग विसालसाला, नाणामणिमय रयणविविहसाहप्पसाहवेरुलियपत्त-तवणिज्जपत्तबिंटा, जंबूणय-रत्तमउयसुकुमालपवाल पल्लववरंकुरधरा, विचित्तमणिरयण-सुरभिकुसुमफलभरनमियसाला, सच्छाया, सप्पभा, सस्सिरीया, सउज्जोया, अहियं नयण-मण-णिबुइकरा, अमयरससमरसफला, पासाईया..।
तेसि णं चेइयरुक्खाणं उवरिं अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता।
१६७. उन प्रत्येक स्तूपों के सामने मणिमयी पीठिकायें बनी हुई हैं। ये मणिपीठिकायें सोलह योजन लम्बी-चौड़ी, आठ योजन मोटी और सर्वात्मना मणि-रत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं।
उन मणिपीठिकाओं के ऊपर एक-एक चैत्य वृक्ष है। ये सभी चैत्य वृक्ष ऊँचाई में आठ योजन ऊँचे, जमीन के भीतर आधे योजन गहरे हैं। इनका स्कन्ध भाग दो योजन का और * आधा योजन चौडा है। स्कन्ध से निकलकर ऊपर की ओर फैली हुई शाखाएँ छह योजन * ऊँची और लम्बाई-चौड़ाई में आठ योजन की हैं। कुल मिलाकर इनका सर्वपरिमाण कुछ * अधिक आठ योजन है। ॐ इन चैत्य वृक्षों का वर्णन इस प्रकार किया गया हैॐ इन वृक्षों के मूल (जड़ें) वज्र रत्नों के हैं, शाखाएँ रजत की, कंद रिष्ट रनों के, मनोरम * स्कन्ध वैडूर्य मणि के, मूलभूत प्रथम विशाल शाखाएँ शोभनीक श्रेष्ठ स्वर्ण की, विविध
शाखा-प्रशाखाएँ नाना प्रकार के मणि-रत्नों की, पत्ते वैडूर्य रल के, पत्तों के वृन्त (डंडियाँ) स्वर्ण के, प्रवाल अरुण, मृदु, सुकोमल हैं, पल्लव एवं अंकुर जाम्बूनद (लाल सोना) के हैं
और विचित्र मणि-रत्नों एवं सुरभिगंधयुक्त पुष्प-फलों के भार से नमित शाखाएँ हैं एवं अमृत के समान मधुर रसयुक्त फल वाले ये वृक्ष सुन्दर, मनोरम छाया, प्रभा, कान्ति, शोभा, उद्योत से सम्पन्न नयन-मन को शान्तिदायक एवं प्रासादिक हैं।
उन चैत्य वृक्षों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं। THE CHAITYA TREE
167. In front of every Stupa, there is a platform. These platforms are 16 yojans long square and 8 yojans thick. They are made of 19 gems. They are clean and attractive.
रायपसेणियसूत्र
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Raupasenaya Sutra
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