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That padmavarvedika (boundary pillar) is covered from all sides with golden garlands (Hemjal) garlands of cow-eye shaped gems (Aavasjal), small bells and long garlands of pearls, gems, gold, jewels and lotus. All those rosaries (garlands) are having ball-like gold beads.
At proper places on that boundary pillar there are pair of identical horses and upto bullock pairs. All of them are made of jewels, they are clean upto attractive and pleasant to the mind. Their lames, rows, coupling and creepers are also of the same type.
१५६. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चति पउमवरवेइया पड़मवरवेइया ?
१५६. गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से पूछा- “हे भदन्त ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि यह पद्मवरवेदिका है ? अर्थात् इस वेदिका को पद्मवरवेदिका कहने का क्या कारण है?" ___156. Gautam Swami asked Bhagavan Mahavir-“Reverend Sir ! Why is it called padmavarvedika ?"
१५७. गोयमा ! पउमवरवेइयाए णं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वेइयासु, वेइयाबाहसु य वेइयफलएसु व वेइयपुडंतरेसु य खंभेसु, खंभवाहासु, खंभसीसेसु, खंभपुडंतरेसु, सूईसु, सूईमुखेसु, सूईफलएसु, सूईपुडंतरेसु, पक्खेसु, पखबाहासु, पक्खपेरतेसु, पक्खपुडंतरेसु बहुयाई उप्पलाइं-पउमाइं-कुमुयाई-णलिणाई-सुभगाई सोगंधियाई-पुंडरीयाई-महापुंडरीयाणि-सयवत्ताई-सहस्सवत्ताई सवरयणामयाई अच्छाइं पडिरूवाइं महया वासिक्कछत्तसमाणाई पण्णत्ताई समणाउसो।
से एएणं अटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ पउमवरवेइया 'पउमवरवेइया'। १५७. भगवान ने उत्तर दिया- “हे गौतम ! पद्मवरवेदिका के आसपास की भूमि में, वेदिका-पाटियों में, वेदिकायुगल के अन्तरालो में, स्तम्भों, स्तम्भों के बाजुओं, स्तम्भों के शिखरों, स्तम्भयुगल के अन्तरालों, कीलियों, कीलियों के ऊपरी भागों, कीलियों से जुड़े हुए फलकों, कीलियो के अन्तरालो, पक्षों, पक्षो के प्रान्त भागों (किनारों) और उनके अन्तरालों आदि-आदि में वर्षाकाल के बरसते मेघों से बचाव करने के लिए छत्र के समान ऐसे अनेक प्रकार के बडे-बडे विकसित, सर्वरत्नमय सुन्दर, निर्मल अतीव सुन्दर, उत्पल, पद्म; कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक, पुंडरीक, महापुंडरीक, शतपत्र और सहस्रपत्र आदि विविध जातियो के कमल पद्म) शोभित हो रहे हैं।
इसीलिए हे आयुष्मान् ! इस पद्मवरवेदिका को पद्मवरवेदिका कहते हैं।'
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रायपसेणियसूत्र
(148)
Rar-paseniya Sutra
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