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* ९०. एगतो वंकं एगओ चक्कवालं। दुहओ चक्कवालं चक्कद्धचक्कवालं णामं दिव्यं पट्टविहिं उवदंसेंति।
९०. इसके बाद एकतोवक्र-(जिस नाटक में एक ही दिशा में धनुषाकार श्रेणी बनाई जाती है), एकतश्चक्रवाल-(एक ही दिशा में चक्राकार श्रेणी बने), द्विघातश्चक्रवाल(परस्पर सम्मुख दो दिशाओ में गोल चक्र बने) ऐसी चक्रार्ध-चक्रवाल नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय किया।
90. Thereafter they performed dance in which bow-like shape is * made on one side, a dance in which circular shape is made in one
direction, a dance in which two circles are made in two sides facing each other, a dance in which a semi-circle is formed, a dance in which shape of wheel of a cart is depicted.
९१. चंदावलिपविभत्तिं च सूरावलिपविभत्तिं च वलयावलिपविभत्तिं च हंसावलिप. च एगावलिप. च तारावलिप. च मुत्तावलिप. च कणगावलिप. च रयणावलिप. च णामं दिव्यं पट्टविहिं उवदंसेंति। ('प' से 'पविभत्तिं' शब्द समझें)
९१. इसी प्रकार अनुक्रम से उन्होंने चन्द्रावलि, सूर्यावलि (चन्द्र-सूर्य मण्डल की * आकृति), वलयावलि (गोलाकार), हंसावलि (हंसों की पंक्ति), एकावलि (एकावली हार की
आकृति), तारावलि (ताराओं की आकृति), मुक्तावलि, कनकावलि और रत्नावलि (इन विशिष्ट प्रकारो के हारों की आकृति) की उत्कृष्ट-विशिष्ट रचनाओं से युक्त दिव्य नाट्यविधि
का अभिनय प्रदर्शित किया। 9 91. Thereafter they created one after the other the shapes in which the particular position of moon, particular position of sun, a circular shape, a row of swans, a garland, a row of stars, a garland of pearls, kanakavali, ratnavali garlands are depicted and danced accordingly.
९२. चंदुग्गमणपविभत्तिं च सूरुग्गमणप. च उग्गमणुग्गमणप. च णामं द्रिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति।
९२. तत्पश्चात् उन देवकुमारों और कुमारियों ने उक्त क्रम से चन्द्रोद्गम प्रविभक्ति, सूर्योद्गम प्रविभक्तियुक्त अर्थात् चन्द्रमा और सूर्य के उदय होने की रचना वाली उद्गमनोद्गमन नामक दिव्य नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। सूर्याभ वर्णन
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