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तत, वितत, घन और शुषिर, ये वाद्यो के चार मुख्य प्रकार बताये गये है। 'तत' के अन्तर्गत आठ प्रकार की वीणा का उल्लेख है। 'वितत' वाद्यो मे चमडे से मढे हुए मृदग, ढोलक, पटल, डिडिम आदि का समावेश किया गया है। तत-वीणा आनन्ददायक मदुर वाद्य है। 'वितत' उत्साहवर्धक वीरोचित जोशीला वाद्य है। 'घन' के अन्तर्गत धातु से बने आपस में टकराने से ध्वनि करने वाले वाद्यो की गिनती है, जैसेकरताल, झल्लरी, मजीरा आदि। भरतनाट्य शास्त्र के अनुसार-बाँस से बने फूंककर बजाये जाने वाले वाद्य 'शुषिर' कहे जाते है। शंख आदि इसी मे सम्मिलित है। नाट्यविधि में वर्णित नाटको की रचना कुछ तो उनके नाम से ही स्पष्ट हो जाती है, जैसे-ककार, चकार आदि वर्णों की आकृति की रचना। स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त आदि की भाँति पात्रो को पक्ति मे खडा करना, झुकाना, हाथो आदि से उनके आकार का प्रदर्शन करना। हस, चक्रवाक आदि पक्षियों की भॉति शरीर को मोड़ना, झुकाना, सूर्य, चन्द्र, तारामण्डल की भाँति पंक्तियाँ बनाकर खडे होना, नृत्य करना तथा सिह, हाथी, मृग, वृषभ, अश्व आदि की तरह विभिन्न प्रकार की आकृति व गति का प्रदर्शन करना यह अधिकतर नाम से ही पता चलता है। 'आरभटी' नृत्य करने वाले गोलाकार बनकर, कमर पर हाथ रखकर, कमर व ग्रीवा को मटकाते हुए जो नृत्य करते है, जिसे 'रास' भी कहा जाता है। या गुजराती ‘डाडिया' नृत्य भी कह सकते है। अचित, रिभित आदि नृत्य की मुद्राएँ है, जिनमें किसी मे तिरछा, किसी में सीधा, किसी मे उछलते हुए, किसी मे शोकातुर मुद्रा बनाना आदि का प्रदर्शन किया जाता है। टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने लिखा है___“नाट्यविधि प्राभृत नामक पूर्व में इन नाट्य-वाद्य आदि का वर्णन था, परन्तु पूर्वो का ज्ञान विच्छेद होने से आज इस सम्बन्ध मे अधिक बताना सम्भव नही है।'' किन्तु इस वर्णन से इतना तो स्पष्ट ही है कि प्राचीनकाल मे संगीत-वाद्य नाट्य कला व अभिनय कला बहुत ही उत्कृष्ट रूप से विकसित थी और
उसके सैकडो प्रकार व सैकडो प्रकार के यंत्र व उपकरण बनाये जाते थे। इनका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थो व पर भरतनाट्य शास्त्र आदि ग्रन्थो मे भी मिलता है।
Elaboration–The detailed description of music, dance and theatrical performances as mentioned in aphorisms 92 to 104 and presented by Suryabh Dev is very difficult to be understood fully in the present age. Many names of these musical instruments are available in commentaries of Jeevabhigam Sutra, Jambu Dveep Prajnaptı, Sthanang Sutra. Some names find mention in Ramayana, Mahabharat, Bharat Natyam (Treatise) Shastra and Sangeet Ratnakar. But the detailed process and postures are not mentioned therein. The description of style of those dances is not available there. ____Four main types of musical sounds are Tat, Vitat, Ghan and Shushir. “Tat includes eight types of flute sound. In Vitat there are sounds of leather covered drums-mridang, dholak, patal, didam and suchlike. Tat is pleasure-giving music. 'Vitat' is music to instal courage and heroism. 'Ghan' includes such substances that create music while striking against each other, for instance kartaal, cymbals, manjeera. According to Bharat Natyam Shastra, the musical instrument made of bamboo. The e
सूर्याभ वर्णन
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