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१३८. “हे भदन्त । पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशा से आते वायु के स्पर्श से * मंद-मद हिलने-डुलने से कॅपने, डगमगाने, फरकने, टकराने, क्षुभित-विचलित और * उदीरित-प्रेरित होने पर उन तृणो और मणियों की कैसी शब्द-ध्वनि होती हैं ?' THE SOUNDS OF GEMS AND GRASS (TRIN)
138. “Reverend Sir ! What type of sound is emitted by the morning, trembling, fluttering, blowing gems and grass when the wind from east, south, west and north touches it ?"
१३९. (उत्तर) गोयमा ! से जहानामए सीयाए वा, संदमाणीए, वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स, सघंटस्स, सपडागस्स, सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स, सखिखिणि-हेमजालपरिक्खित्तस्स, हेमवयचित्ततिणिस-कणगणिज्जुत्तदारुयायस्स, सुसंपनिद्धचक्कमंडलधुरागस्स, कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स आइण्णवरतुरगसुसंपउत्तस्स।
कुसलणरच्छेयसारहि-सुसंपरिग्गहियस्स, सरसबत्तीसतोणपरिमंडियस्स सकंकडावयंगस्स, सचाव-सर-पहरण-आवरणभरिय-जोधजुज्झसज्जस्स।
रायंगसि वा रायंतेउरंसि वा रम्मंसि नवा मणिकुट्टिमतलंसि अभिक्खणं अभिक्खणं अभिघट्टिजमाणस्स वा नियट्टिजमाणस्स वा ओराला मणुण्णा मणोहरा कण्णमण-निवुइकरा सद्दा सबओ समंता अभिणिस्सवंति।
भवेयारूवे सिया ? णो इणढे समढे।
१३९. “हे गौतम ! जिस तरह शिविका-(डोली, पालकी) अथवा स्यन्दमानिका (बहली-सुखपूर्वक एक व्यक्ति के बैठने योग्य घोडा जुता यान-विशेष) अथवा वह रथ, जो * छत्र, ध्वजा, घटा, पताका और उत्तम तोरणों से सुशोभित हो, मिले हुए बाजों के
शब्द-निनाद करने वाले घुघुरुओं एवं स्वर्णमयी मालाओं से परिवेष्टित हो, हिमालय में * उत्पन्न अति निगड़-(सघन) उत्तम तिनिश (बैंत) काष्ठ से निर्मित एव सुव्यवस्थित रीति से
लगाये गये आरों से उक्त पहियों और धुरा से सुसज्जित हो, सुदृढ उत्तम लोहे के पट्टों से * सुरक्षित पट्टियों वाले, शुभ लक्षणों और गुणों से युक्त कुलीन अश्व जिसमें जुते हो। ___ रथ-संचालन-विद्या में अति कुशल, दक्ष सारथी द्वारा संचालित हो, एक सौ-एक सौ बाण वाले बत्तीस तूणीरो (तरकसों) से परिमंडित हो, कवच से आच्छादित अग्र-शिखर
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सूर्याभ वर्णन
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Description of Suryabh Deve
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