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D खोभियाए, उदीरियाए ओराला, मणुण्णा, मणहरा, कण्णमण-निव्वुइकरा सद्दा सव्वओ
समंता अभिनिस्सवंति। ___ भवेयारूवे सिया ? णो इणढे समढे।
१४०. “भदन्त ! क्या उन मणियों और तृणों की ध्वनि ऐसी है जैसी कि वादनकुशल नर या नारी मध्य रात्रि अथवा रात्रि के अन्तिम प्रहर मे चंदन के सार भाग से रचित कोण (वीणा बजाने का दंड, डांडी) के स्पर्श से उत्तर-मंद मूर्च्छना वाली वैतालिक वीणा को गोद में लेकर मंद-मंद ताड़ित, कम्पित, प्रकंपित, चालित, घर्षित, क्षुभित और उदीरित किये
जाने पर सभी दिशाओ एवं विदिशाओं मे चारो ओर उदार, सुन्दर, मनोज्ञ, मनोहर, • कर्णप्रिय एवं मनमोहक ध्वनि गूंजती है?'
“गौतम ! नहीं, यह उपमा सही नहीं है। उन मणियों और तृणों की ध्वनि इससे भी अधिक मधुर है।" ____140. “Reverend Sir ! Is the sound of gems and grass comparable to the expert musicians at mid night or in the last quarter of the night, who are having Vaitalik lute in their lap, strike against the lute made of best sandal wood that is able to produce soft sound with its touch. When the musician beats the lute softly and plays on
it with his perfect skill, touching it properly and skillfully, it o produces beautiful, attractive, pleasant, heartening sound in all the
directions." ___ “Gautam ! No. This illustration does not befit here. The sound of jewels and grass is sweeter than that sound of lute."
१४१. से जहानामए किन्नराण वा, किंपुरिसाण वा, महोरगाण वा, गंधव्वाण वा, भद्दसालवणगयाणं वा, नंदणवणगयाणं वा, सोमणसवणगयाणं वा, पंडगवणगयाणं वा, हिमवंतमलयमंदर-गिरिगुहासमनागयाणं वा, एगओ सन्निहियाणं समागयाणं सन्निसन्नाणं
समुवविट्ठाणं पमुइय-पक्कीलियाणं गीयरइ गंधवहसियमणाणं गजं पज्जं, कत्थं, गेयं * पयबद्धं, पायबद्धं उक्खित्तं पायंतं मंदायं रोइयावसाणं सत्तसरसमन्नायं छुद्दोसविप्पमुक्कं
एक्कारसालंकारं अट्ठगुणोववेयं, गुंजाऽवंक-कुहरोवगूढं रत्तं तिट्ठाणकरणसुद्धं पगीयाणं, भवेयारूवे ?
१४१. “भगवन् ! तो क्या उनकी ध्वनि इस प्रकार की है, जैसे कि भद्रशालवन, नन्दनवन, सौमनसवन अथवा पांडुकवन या हिमवन, मलय अथवा मदर गिरि की गुफाओं
*
सूर्याभ वर्णन
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Description of Suryabh Deva
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