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१५१. उन हंसासनो आदि पर बहुत से सूर्याभ विमानवासी देव और देवियाँ सुखपूर्वक बैठते हैं, सोते हैं, शरीर को लम्बा कर लेटते हैं, विश्राम करते हैं, ठहरते हैं, करवट लेते हैं, रमण करते हैं, केलिक्रीड़ा करते हैं, इच्छानुसार भोग-विलास भोगते हैं, मनोविनोद करते हैं, रासलीला करते हैं और रतिक्रीड़ा करते हैं। इस प्रकार वे अपने-अपने पुरुषार्थ से पूर्वोपार्जित शुभ, कल्याणमय, शुभफलप्रद, मंगलरूप पुण्य कर्मों के कल्याणरूप फलविपाक का अनुभव करते हुए समय बिताते हैं।
151. Many gods and goddesses of Suryabh Viman sit comfortably on those swan pictured seats, they sleep there, they stretch their body, they take rest, they move to one side while lying, they enjoy, they sport, they humour, they dance, they do amorous activities and sex on those seats. Thus they enjoy the fruit of their auspicious, pleasure giving karmas (actions) performed earlier. बनखंडवर्ती प्रासादावतंसक
१५२. तेसि णं वणसंडाणं बहुमझदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता।
तेणं पासायवडेंसगा पंच जोयणसयाई उठं उच्चत्तेणं, अट्टाइज्जाइं जोयणसयाइंस विक्खंभेणं, अब्भुग्गयामूसियपहसिया इव तहेव बहुसमरमणिज्जभूमिभागो, उल्लोओ,
सीहासणं सपरिवारं। ____ तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्ठिइया परिवसंति, तं जहा–असोए सत्तपण्णे चंपए चूए।
१५२. उन वनखंडों के मध्यातिमध्य भाग (बीचोंबीच) में प्रत्येक एक-एक प्रासादावतंसक (प्रासादों में मुकुट मणि की तरह श्रेष्ठ प्रासाद) कहे हैं। __ ये प्रासादावतंसक पाँच सौ योजन ऊँचे और अढाई सौ योजन चौडे हैं और अपनी उज्ज्वल प्रभा से हँसते हुए से प्रतीत होते हैं। इनका भूमिभाग अतिसम एवं रमणीय है। इनके चदेवा, सामानिक आदि देवों के भद्रासनों सहित सिंहासन का वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए।
इन प्रासादावतसकों में महान् ऋद्धिशाली यावत् अतीव सुख-सम्पन्न एक पल्योपम की स्थिति वाले चार देव निवास करते है। उनके नाम इस प्रकार हैं-अशोकदेव, सप्तपर्णदेव, चंपकदेव और आम्रदेव। THE GRAND PALACES IN FOREST-REGIONS
152. A grand palace exists in the centre of each forest-region. सूर्याभ वर्णन
2009-RDAROP10098699
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55080-46990980
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Description of Suryabh Dev
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