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मे गये हुए एवं एक स्थान पर एकत्रित, समागत, बैठे हुए और अपने - अपने समूह के साथ उपस्थित, हर्षोल्लासपूर्वक क्रीड़ा करने में तत्पर संगीत, नृत्य, नाटक, हास, परिहासप्रिय किन्नरों, किपुरुषों, महोरगों अथवा गंधर्वो के गद्यमय, पद्यमय, कथनीय, गेय, पदबद्ध, पादबद्ध, उत्क्षिप्त, पादान्त, मंद-मंद घोलनात्मक, जिनका अन्त रुचिकर और सुखकर हो ऐसे रोचितावसान- सुखान्त, मनमोहक सप्त स्वरों से समन्वित, षड्दोषों से रहित, ग्यारह अलंकारों और आठ गुणों से युक्त, गुंजारव से दूर-दूर के कोनों को कम्पित करने वाले राग-रागिनी से युक्त त्रि-स्थान-करण शुद्ध गीतो के मधुर बोल होते हैं ?"
141. “O Lord ! When kinnar, kimpurush, mahorag and gandharv-the demon-gods go into the caves of Bhadrashal forest, the Nandan forest, the Saumanas forest or the Panduk forest, the Him forest or in the caves of Malay mount or Mandar mountain, or sit together, join together or come together along with their group, and are ready to play in a spirit of joy or to engage themselves in music, dance, dramatic activities or buffoonery, they create music. Their music is prose, poetic, worth-mentioning, worth-singing, harmonious, according to time, raised up and properly concluded and pleasant. It is properly timed with seven musical notes making it attractive. It is devoid of six mistakes. It possess eleven ornamented qualities and eight virtues. It echoes from a great distance. It contains music and musical notes that are pleasant to the ears. The pure musical notes rise from three places in harmony. Please tell me if the music of gems and grass is of this type?"
१४२. हंता सिया ।
१४२. गौतम ! हॉ। ऐसी ही मधुरातिमधुर ध्वनि उन मणियों और तृणों से निकलती है। 142. “Gautam ! Yes. The musical note produced by gems and grass is sweet like this and sweeter also."
विवेचन - यहाँ सूर्याभदेव के विमान के वनखण्डो में बिछे रमणीय रत्नो और तृणो की होने वाली ध्वनियो का अत्यन्त अलकारपूर्ण रसमय वर्णन किया है। उपमाओं से बताया है कि उन मणियो व तृणो मधुर ध्वनि कैसी होती है ? यहाॅ तीसरी उपमा किन्नरो, गंधर्वो के सगीत से दी गई है। चार देवनिकायो किन्नर, किपुरुष, महोरग और गधर्व व्यतरनिकाय के देव है। ये सभी प्रशस्त गीत, संगीत, नृत्य एव नाट्य-कलाओ के प्रेमी होते है । बालसुलभ क्रीडा और हास-परिहास, कोलाहल करने में इन्हें आनन्दानुभूति होती है। पुष्पो से बनाये हुए मुकुट, कुंडल आदि इनके प्रिय आभूषण है । सर्व ऋतुओ के सुन्दर सुगधित पुष्पो द्वारा निर्मित वनमालाओ से इनके वक्षस्थल शोभित रहते है । ये अनेक प्रकार के
रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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