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११०. तत्पश्चात् उन सभी देवकुमारो और देवकुमारियों ने चार प्रकार के अभिनय प्रदर्शित किये, जैसे- दान्तिक, प्रात्यंतिक, सामान्यतोविनिपातनिक और अन्तर्मध्यावसानिक ( लोकमध्यावसानिक) ।
110. Thereafter they exhibited four types of acting namelydaarshtantik, pratyantic, samanyatovinipatnik and antarmadhyavasanik.
विवेचन-सूत्र सख्या १०७- ११० पर्यन्त नाटको का प्रदर्शन करने के पश्चात् उपसहार रूप चार प्रकार के वाद्यो को बजाने, सगीतो को गाने एव नृत्य और अभिनय को करने का उल्लेख किया है।
वाद्यादि अभिनय पर्यन्त चार-चार प्रकारो का उल्लेख करने का कारण यह है कि ये उन सगीत आदि के मूल स्रोत है। अर्थात् वाद्यो, राग-रागिनियो व अभिनयो आदि के अलग-अलग नाम होने पर भी वे सभी मुख्य - गौण रूप से इन चार प्रकारो के ही विकसित विविध रूप है।
प्रस्तुत मे तत आदि से वाद्यो के भेद, उत्क्षिप्त आदि से सगीत के प्रकार और अचित आदि से नृत्य के चार-चार प्रकार और उनके सामान्य अर्थ समझ लिए जा सकते है। इसी प्रकार अभिनय के जो चार प्रकार बतलाये है उनमे से शब्दो के अर्थ तो समझे जा सकते है, परन्तु उन अभिनयो की शैली और आकृतियो का रहस्य समझने के लिए सगीत तथा अभिनय विशारदो एव नाट्यशास्त्र से जानकारी प्राप्त करना चाहिए।
Elaboration-After depicting dramatic performances as in aphorisms 107 to 110, there is mention of playing four types of musical instruments, singing four types of music, dancing of four types and acting of four types
The reason for such performances in the end is that these are the main source of music, dance etc. In other words although there are distinct names for various types of music, music tunes, dances and acting, yet these are in fact developed forms of the four types of each mentioned in the end directly or indirectly.
In the present context, Tat and others in this category represent musical sounds, utkshipt and others represent the types of music, anchit etc represent four types of dances. The meaning of words mentioned for four types of acting can be understood but in order to understand the style and postures in such acting and the secret behind it, one has to approach experts in acting and the literature thereof.
१११. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य गोयमादियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविडिं दिव्यं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभावं दिव्व बत्तीसइबद्धं नाड्यं उवदंसित्ता
सूर्याभ वर्णन
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