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१०३. तदनन्तर पद्मलता यावत् नागलता, अशोकलता, चम्पकलता, आम्रलता, वनलता, वासंतीलता, अतिमुक्तकलता और श्यामलता की सुरचना वाला लता प्रविभिक्ति नामक नाट्याभिनय प्रदर्शित किया।
103. Thereafter they depicted in their dancing performance creepers of Lotus, Naag, Ashok, Champak, Aamra, Van, Vasanti, Atimuktak and Shyamalata.
१०४. दुयणामं उवदंसेंति। विलंबियं णामं उव. । दुयविलंबियं णामं उव.। अंचियं, रिभियं, अंचियरिभियं, आरभडं, भसोलं आरभड-भसोलं। ___ उप्पय-निवयपवत्तं, संकुचियं पसारियं रयारइयं भंतं संभंतं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति। .
१०४. इसके पश्चात् अनुक्रम से द्रुत (चंचल गति), विलंबित (मंद गति), द्रुत-विलंबित (कभी चपल, कभी मंद), अंचित (तिरछी गति), रिभित (ध्वनि करते हुए),
अंचित-रिभित (तिरछा होकर घोष करते हुए), आरभट (शरीर को मोडते हुए), भसोल 2 और आरभट-भसोल नामक नाट्यविधियों का अभिनय प्रदर्शित किया। ___ तदनन्तर उत्पात-निपात (ऊपर-नीचे उछलने-कूदने-गिरने), संकुचित-प्रसारित (भय
और हर्ष दिखाते हुए शरीर के अंगोपांगों को सिकोडना और फैलाना) रयारइय, भ्रान्त और संभ्रान्त सम्बन्धी क्रियाओं विषयक दिव्य नाट्य अभिनयों को दिखाया। _____104. Thereafter, in respective order, they performed dances at a fast speed, at slow speed, at fast and slow speed, in slotting direction, dance making sound, dance making sound and turning the body, dance while twisting the body, Bhasol dance, Bhasol dance to twisting the body.
Thereafter they performed dances in which there is jumping, falling, exhibiting of fear, of happiness by squeezing and spreading parts of the body and smaller limbs. They also did dance depicting state of doubt and deeper agony pertaining to doubt.
विवेचन-सूत्र ९२ से १०४ तक सूर्याभदेव द्वारा प्रस्तुत संगीत, वाद्य और नाट्यविधियों का जो विस्तृत वर्णन है, वह आज वर्तमान में पूर्ण रूप में समझ पाना कठिन है। बहुत से वाद्यो के नाम तो * जीवाभिगमसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, स्थानागसूत्र आदि की टीकाओ मे मिलते है, अनेकों नाम रामायण तथा
महाभारत में भी है तथा भरतनाट्य शास्त्र एव सगीत रत्नाकर नामक ग्रन्थों मे कुछ नाम मिलते है। किन्तु
उनकी विशेष जानकारी तथा मुद्राएँ उपलब्ध नहीं हैं। उन वाद्यो, नाटको की आकृति कैसी होती थी • इसका वर्णन नही मिलता है।
रायपसेणियसूत्र
(94)
Rar-paseniya Sutra
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