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(2) srivats, (3) nandavart (an auspicious mark with nine angles), ** * (4) vardhmanag, (5) bhadrasan (an auspicious seat), (6) kalash
(pitcher), (7) matsya (fish), and (8) darpan (mirror) and danced accordingly.
८६. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य सममेव समोसरणं करेंति करित्ता तं चेव भाणिय जाव दिब्बे देवरमणे पवत्ते या वि होत्था।
८६. इसके पश्चात् नाट्यविधि दिखाने के लिए वे देवकुमार और देवकुमारियाँ पुनः
एकत्रित हुईं और एकत्रित होने से लेकर दिव्य देवरमण में प्रवृत्त होने पर्यन्त का पूर्वोक्त * सभी वर्णन सूत्र ८१ के अनुसार जानना चाहिए।
86. Thereafter they again gathered to exhibit their dancing skill " (Further description is similar to that in Aphorism 81).
८७. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवड-पच्चावड-सेढि-पसेढि-सोत्थिय-पूसमाणव-वद्धमाणग-मच्छण्ड-मगरंडजार-मार-फुल्लावलि-पउमपत्त-सागर-तरंग-वसंतलता-पउमलयभत्तिचित्तं णाम दिव् णट्टविहिं उवदंसेंति।
८७. तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने श्रमण भगवान महावीर एव गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों के सामने आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्यमाणवक, वर्धमानक, मत्स्याण्डक, मकराण्डक, जार, मार, पुष्पावलि, पद्मपत्र, सागर,
तरंग, वासन्तीलता और पद्मलता के आकार की रचना करके दिव्य नाट्यविधि का 9 अभिनय किया। ___87. Thereafter, the dancing gods and goddesses stood in the shape of a circle, a circle in front of another, a row, a row in front of another row, an angular figure (svastik), srivats, poos-manag, a person lifting another on his shoulders (vaddh-manag), egg of a fish (machhand), egg of a crocodile (makarand), jaar, cupid (maar), a row of blooming flowers (phullavali), a lotus leaf, an ocean, a wave of the ocean, a spring creeper, a lotus creeper. Then they danced accordingly in front of Bhagavan Mahavir, Gautam and other saints.
विशेष शब्दार्थ-आवर्त-(चक्राकार घूमना), प्रत्यार्त-(वापस लौटना), श्रेणि-प्रश्रेणि-(सीधी पक्ति, ऊपर-नीचे अनेक सीधी पक्तियाँ), मत्स्याण्डक-(मछली के अण्डे की आकृति), मकराण्डक-(मकर के सूर्याभ वर्णन
Description of Suryabh Dev
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