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मध्य भाग है उसीप्रकार यह जम्बूद्वीप भी समस्तद्वीपोंमें तथा तीनलोकके मध्यभागमें है ऐसा बड़े बडे यतीश्वर कहते हैं। इस जम्बूद्वीपके मध्यमें अनेक शोभाओंसे शोभित, गले हुवे सोनेके समान देह वाला, देदीप्यमान, अनेक कान्तियोंसे व्याप्त, सुवर्णमय मेरु पर्वत है । यह मेरु साक्षात् विष्णुके समान मालूम पड़ता है। क्योंकि जिसप्रकार विष्णुके चार भुजा हैं, उसीप्रकार इसमेरुपर्वतके भी चार गजदंत रूपी चार भुजा हैं
और जिसप्रकार विष्णुका नाम अच्युत है उसीप्रकार यह भी अच्युत अर्थात् नित्य है। जिसप्रकार विष्णु श्रीसमान्वित अर्थात् लक्ष्मीसहित हैं, उसीप्रकार यह मेरुपर्वत भी श्रीसमन्वित अर्थात् नानाप्रकारकी शोभाओंसे युक्त है । इस मेरु पर्वतपर सुभद्र, भद्रशाल, तथा स्वर्गके नदंन वनके समान नदनवन, और अनेकप्रकारके पुष्पोंकी सुगंधिसे सुगंधित करनेवाले सौमनस्य वन, हैं । यह मेरु अपांडु अर्थात् सफेद न होकर भी पाण्डुकशिलाका धारक सोलह अकृत्रिम चैत्यालयोंकसे युक्त अपनी प्रसिद्धिसे सवको व्याप्त करनेवाला अर्थात् अत्यंत प्रसिद्ध और नानाप्रकारके देवोंसे युक्त है । बड़े भारी ऊंचे परकोटेका धारण करने वाला, सुर्वण मय और नाना प्रकारके रत्नोंसे शोभित, यह मेरु, निराधार स्वर्गके टिकनेके | लिये मानो एक ऊचा खंभा ही है ऐसा जान पड़ता है। यह
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