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मातापिताने विचार किया कि-"दैवयोगसे यह इधर उधर देखता है इसमें कुछ तो भी छल-कपट होना चाहिये, परंतु विशेष दुःखकी बात तो यह है कि इसकी वाचा ही बंद होगयी."
इस प्रकार संकल्प विकल्प करते चिन्तातुर होकर वे उसे घर ले गये । राजाने कुमारकी वाणी प्रकट करने के लिये नानाप्रकारके उपाय किये, परंतु वे सर्व दुर्जन पर किये हुए उपकारोंकी भांति निष्फल होगये । छ:मास इसीभांति व्यतात होगये, परंतु कुमारकी मौनावस्थाका कोई भी योग्य निदान न कर सका.
"बड़े खेदकी बात है कि विधाता अपने रचेहुए प्रत्येकरत्नमें कुछ तो भी दोष रख देता है, जैसे कि- चंद्रमामें कलंक, सूर्यमें तीक्ष्णता, आकाशमें शून्यता, कौस्तुभमणिमें कठोरता, कल्पवृक्षमें काष्ठपन, पृथ्वीमें रजःकण, समुद्रमें खारापन, सर्वजगत्को ठंडक देनेवाले मेघमें कृष्णता, जलमें नाचगति, स्वर्णमय मेरूपर्वतमें कठिनता, कपूर) अस्थिरता, कस्तूरीमें कालापन, सजनों में निधनता, श्रीमानोंमें मूर्खता तथा राजाओंमें लोभ रख दिया है, वैसे ही सर्वथा निर्दोष इस कुमारको मूक (गूंगा) कर दिया है । " इस प्रकार समस्त नगरवासी जन उच्चस्वरसे शोक करने लगे । भला, बडे लोगोंका कुछ अनिष्ट हो जाय तो किसको खेद नहीं होता ? ___कुछ कालके अनन्तर कौमुदी महोत्सवका समय आया (इस उत्सवमें प्रायः लोग प्रकाशरूपसे क्रीडा करते हैं व बहुत