Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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जैन मुनियोंका सम्मेलन हुआ था । यदि यह अनुमान ठीक हो तो मानना पड़ेगा कि सतारा जिलेका भाग उस समय आन्ध्र देशके अर्न्तगत था । आन्धोंका राज्य पुराणों व शिलादि लेखोंपर से ईस्वी पूर्व २३२ से ई० सन् २२५ तक पाया जाता है । इसके पश्चात् कमसे कम इस भागपर आधों का अधिकार नहीं रहा । अतएव इस देशको आन्ध्र विषयान्तर्गत लेना इसी समयके भीतर माना जा सकता है | गिरिनगर से लौटते हुए पुष्पदंत और भूतबलिने जिस अंकुलेश्वर स्थानमें वर्षाकाल व्यतीत किया था वह निरसन्देह गुजरात में भडोंच जिलेका प्रसिद्ध नगर अंकलेश्वर ही होना चाहिये । वहांसे पुष्पदन्त जिस वनवास देशको गये वह उत्तर कर्नाटकका ही प्राचीन नाम है जो तुंगभद्रा और वरदा नदियों के बीच बसा हुआ है । प्राचीन कालमें यहां कदम्ब वंशका राज्य था । जहां इसकी राजधानी ' बनवासि ' थी वहां अब भी उस नामका एक ग्राम विद्यमान है । तथा भूतबलि जिस द्र मेल देशको गये वह दक्षिण भारतका वह भाग है जो मद्रास से सेरिंगपट्टम और कामोरिन तक फैला हुआ है और जिसकी प्राचीन राजधानी कांचीपुरी थी । प्रस्तुत ग्रंथकी रचना - संबन्धी इन भौगोलिक सीमाओंसे स्पष्ट जाना जाता है कि उस प्राचीन कालमें काठियावाड़ से लगाकर देश के दक्षिणतम भाग तक जैन मुनियोंका प्रचुरता से विहार होता था और उनके वीच पारस्परिक धार्मिक व साहित्यिक आदान-प्रदान सुचारुरूपसे चलता था । यह परिस्थिति विक्रमकी दूसरी शताब्दितक के समयका संकेत करती है ।
६. वीर - निर्वाण-काल
पूर्वोक्त प्रकार से षट्खंडागमकी रचनाका समय वीरनिर्वाणके पश्चात् सातवीं शताब्दि के अन्तिम या आठवीं शताब्दि के प्रारम्भिक भागमें पड़ता है । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि महावीर भगवान्का निर्वाणकाल क्या है ?
जैनियों में एक वीरनिर्वाण संवत् प्रचलित है जिसका इस समय २४६५ वां वर्ष चालू है । इसे लिखते समय मेरे सन्मुख 'जैन मित्र' का ता. १४ सितम्बर १९३९ का अंक प्रस्तुत है जिसपर वीर सं. २४६५ भादों सुदी १, दिया हुआ है। यह संवत् वीरनिर्वाण दिवस अर्थात् पूर्णिमान्त मास- गणना के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष १४ के पश्चात् बदलता है । अतः आगामी नवम्बर ११ सन् १९३९ से निर्वाण संवत् २४६६ प्रारम्भ हो जायगा । इस समय विक्रम संवत् १९९६ प्रचलित है और यह चैत्र शुक्ल पक्षसे प्रारम्भ होता है । इसके अनुसार निर्वाण संवत् और विक्रम संवत् में २४६६ - १९९६ = ४७० वर्ष का अन्तर है । दोनों संवतोंके प्रारम्भ मासमें भेद होनेसे कुछ मासोंमें यह अन्तर ४६९ वर्ष आता है जैसा कि वर्तमान में । अतः इस मान्यता के अनुसार महावीरका निर्वाण विक्रम संवत् से कुछ मास कम ४७० वर्ष पूर्व हुआ ।
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