Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
[ ४१
१, १, १.]
संत-परूवणाणुयोगद्दारे मंगलायरणं विघ्नाः प्रणश्यन्ति भयं न जातु न दुष्टदेवाः परिलङ्घयन्ति । अर्थान्यथेष्टांश्च सदा लभन्ते जिनोत्तमानां परिकीर्तनेन' ॥ २१ ॥ आदौ मध्येऽवसाने च मङ्गलं भाषितं बुधैः ।
तजिनेन्द्रगुणस्तोत्रं तदविघ्नप्रसिद्धये ॥ २२ ॥ तच मंगलं दुविहं णिवद्धमणिबद्धमिदि । तत्थ णिबद्धं णाम, जो सुत्तस्सादीए सुत्त-कत्तारेण णिबद्ध-देवदा-णमोकारो तं णिबद्ध-मंगलं । जो सुत्तस्सादीए सुत्त-कत्तारेण कय-देवदा-णमोकारो तमणिबद्ध-मंगलं । इदं पुण जीवहाणं णिबद्ध-मंगलं । यत्तो ' इमेसिं चोद्दसण्हं जीवसमासाणं ' इदि एदस्स मुत्तस्सादीए णिवद्ध-' णमो अरिहंताणं' इच्चादिदेवदा-णमोकार-दसणादो।
सुत्तं किं मंगलमुद अमंगलमिदि' ? जदि ण मंगलं, ण तं मुत्तं पावकारणस्स
जिनेन्द्रदेवके गुणोंका कीर्तन करनेसे विघ्न नाशको प्राप्त होते हैं, कभी भी भय नहीं होता है, दुष्ट देवता आक्रमण नहीं कर सकते हैं और निरन्तर यथेष्ट पदार्थों की प्राप्ति होती है।
विद्वान् पुरुषोंने, प्रारम्भ किये गये किसी भी कार्यके आदि, मध्य और अन्तमें मंगल करनेका विधान किया है। वह मंगल निर्विघ्न कार्यसिद्धिके लिये जिनेन्द्र भगवानके गुणोंका कीर्तन करना ही है।
. वह मंगल दो प्रकारका है, निबद्ध-मंगल और अनिबद्ध-मंगल । जो ग्रन्थके आदिमें ग्रन्थकारके द्वारा इष्ट-देवता नमस्कार निबद्ध कर दिया जाता है, अर्थात् श्लोकादिरूपसे रचा जाता है, उसे निबद्ध-मंगल कहते हैं। और जो ग्रन्थकारके द्वारा देवताको नमस्कार किया जाता है (किन्तु श्लोकादिके द्वारा संग्रह नहीं किया जाता है,) उसे अनिबद्ध मंगल कहते हैं। उनमेंसे यह 'जीवस्थान' नामका प्रथम खण्डागम निबद्ध-मंगल है, क्योंकि, 'इमेसिं चोइसण्हं जीवसमासाणं' इत्यादि जीवस्थानके इस सूत्रके पहले ‘णमो अरिहंताणं' इत्यादि रूपसे देवता-नमस्कार निबद्धरूपसे देखनेमें आता है।
शंका-सूत्र-ग्रन्थ स्वयं मंगलरूप है, या अमंगलरूप ? यदि सूत्र स्वयं मंगलरूप नहीं है, तो वह सूत्र भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि, मंगलके अभावमें पापका कारण होनेसे
१ णासदि विग्धं भेददि यहो दुट्ठा सुरा ण लंघेति । इट्ठो अत्थी लभइ जिणणामं गहणमेत्तेण ॥
ति. प. १, ३.. २ आदर्श प्रतिषु ' जो सुत्तस्सादीएं सुत्तकत्तारेण कयदेवदाणमोकारो तं णिबद्धमंगलं । जो मुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णिबद्धो देवदाणमोकारो तमणिबद्धमंगलं ' इति पाठः ।
। ३ जद मंगलं सयं चिय सत्थं तो किमिह मंगलग्गहणं? सीसमइमंगलपरिग्गहत्थमेत्तं तदमिहाणं ॥ इह मंगलं पि मंगलबुद्धीए मंगलं जहा साहू | मगलतियर्बुद्धिपरिग्गहे वि नणु कारणं भणि॥ वि. भा. २०, २१,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org