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३२२] छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, १, ८१. नारकाणामोघमभिधायादेशप्रतिपादनार्थमाहएवं पढमाए पुढवीए णेरड्या ॥ ८१ ॥
प्रथमायां पृथिव्यां ये नारकास्तेषां नारकाणां सामान्योक्तरूपेण' भवन्ति । कुतो? विशेषाभावात् । यदि सामान्यप्ररूपणया प्रथमपृथिवीगतनारका एव निरूपिता भवेयुरलं तया, विशेषनिरूपणतयैव तदवगतरिति ? न, द्रव्यार्थिकनयात् सत्त्वानुग्रहार्थ तत्प्रवृत्तेः । विशेषप्ररूपणमन्तरेण न सामान्यप्ररूपणतोऽर्थावगतिर्भवतीति तथा निरूपणमनर्थकमिति चेन्न, बुद्धीनां वैचित्र्यात् । तथाविधबुद्धयो नेदानीमुपलभ्यन्त इति चेन्न, अस्यार्षस्य त्रिकालगोचरानन्तप्राण्यपेक्षया प्रवृत्तत्वात् ।
शेषपृथिवीनारकाणां प्रतिपादनार्थमाह -
इसप्रकार सामान्यरूपसे नारकियोंका कथन करके अब विशेषरूपसे कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
इसीप्रकार प्रथम पृथिवीमें नारकी होते हैं॥८१॥
प्रथम पृथिवीमें जो नारकी रहते हैं उनकी पर्याप्तियां और अपर्याप्तियां नरकगतिके सामान्य कथनके अनुसार होती हैं, क्योंकि, नरकगतिसंबन्धी सामान्य कथनमें और प्रथम पृथिवीसंबन्धी कथनमें कोई विशेषता नहीं है।
शंका-यदि सामान्यप्ररूपणाके द्वारा प्रथम पृथिवीसंबन्धी नारकी ही निरूपित किये गये हैं, तो सामान्यप्ररूपणाके कथन करनेसे रहने दो, क्योंकि, विशेषप्ररूपणासे ही उसका ज्ञान हो जायगा?
समाधान- नहीं, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा रखनेवाले जीवोंके अनुग्रहके लिये सामान्यप्ररूपणाकी प्रवृत्ति मानी गई है।
शंका--विशेषप्ररूपणाके विना केवल सामान्यप्ररूपणासे अर्थका ज्ञान नहीं हो सकता है, ऐसी हालतमें सामान्यप्ररूपणाका कथन करना निष्फल है?
समाधान- नहीं, क्योंकि, श्रोताओंकी बुद्धि अनेक प्रकारको होती है, इसलिये विशेष प्ररूपणाके कथनके समान सामान्यप्ररूपणाका कथन करना भी निष्फल नहीं है।
शंका-जो सामान्यसे पदार्थको समझ लेते हैं ऐसे बुद्धिमान पुरुष इस कालमें तो नहीं पाये जाते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, आगम तो त्रिकालमें होनेवाले अनन्त प्राणियोंकी अपेक्षा प्रवृत्त होता है।
शेष पृथिवियों में रहनेवाले नारकियों के विशेष कथनके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
१ पर्याप्तयोऽपर्याप्तयश्च ' इति पाठशेषः ।
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