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१, १, ९३.] संत-परूवगाणुयोगद्दारे जोगमग्गणापरूवणं
[३३३ यते ? अस्मादेवार्षात् । अस्मादेवार्षाद् द्रव्यस्त्रीणां निर्वृत्तिः सिद्धथेदिति चेन्न, सवासस्त्वादप्रत्याख्यानगुणस्थितानां संयमानुपपत्तेः । भावसंयमस्तासां सवाससामप्यविरुद्ध इति चेत्, न तासां भावसंयमोऽस्ति भावासंयमाविनाभाविवस्त्राद्युपादानान्यथानुपपत्तेः । कथं पुनस्तासु चतुर्दश गुणस्थानानीति चेन्न, भावस्त्रीविशिष्टमनुष्यगतौ तत्सत्याविरोधात् । भाववेदो बादरकषायान्नोपर्यस्तीति न तत्र चतुर्दशगुणस्थानानां सम्भव इति चेन्न, अत्र वेदस्य प्राधान्याभावात् । गतिस्तु प्रधाना न साराद्विनश्यति । वेदविशेषणायां गतौ न तानि सम्भवन्तीति चेन्न, विनष्टेऽपि विशेषणे उपचारेण तद्वयपदेशमादधानमनुष्यगतौ तत्सत्याविरोधात् । मनुष्यापर्याप्तेष्वपर्याप्तिप्रतिपक्षाभावतः सुगमत्वान्न तत्र वक्तव्यमस्ति ।
समाधान-इसी आगम प्रमाणसे जाना जाता है। शंका-तो इसी आगमसे द्रव्य-स्त्रियोंका मुक्ति जाना भी सिद्ध हो जायगा?
समाधान-नहीं, क्योंकि, वस्त्रसहित होनेसे उनके संयतासंयत गुणस्थान होता है, अतएव उनके संयमकी उत्पत्ति नहीं हो सकती है।
शंका- वस्त्रसहित होते हुए भी उन द्रव्य-स्त्रियोंके भावसंयमके होनेमें कोई विरोध नहीं आना चाहिये?
समाधान- उनके भाव संयम नहीं है, क्योंकि, अन्यथा, अर्थात् भाव संयमके मानने पर, उनके भाव असंयमका अविनाभात्री वस्त्रादिकका ग्रहण करना नहीं बन सकता है।
शंका- तो फिर स्त्रियों में चौदह गुणस्थान होते हैं यह कथन कैसे बन सकेगा ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, भावस्त्रीमें, अर्थात् स्त्रीवेद युक्त मनुष्यगतिमें, चौदह गुणस्थानोंके सद्भाव मान लेनेमें कोई विरोध नहीं आता है।
शंका-बादरकषाय गुणस्थानके ऊपर भाववेद नहीं पाया जाता है, इसलिये भाववेदमें चौदह गुणस्थानोंका सद्भाव नहीं हो सकता है?
समाधान--नहीं, क्योंक, यहां पर वेदकी प्रधानता नहीं है, किंतु गति प्रधान है। और वह पहले नष्ट नहीं होती है।
शंका-यद्यपि मनुष्यगतिमें चौदह गुणस्थान संभव हैं। फिर भी उसे वेद विशेषणसे युक्त कर देने पर उसमें चौदह गुणस्थान संभव नहीं हो सकते हैं?
समाधान- नहीं, क्योंकि, विशेषणके नष्ट हो जाने पर भी उपचारसे उस विशेषण युक्त संक्षाको धारण करनेवाली मनुष्यगतिमें चौदह गुणस्थानोंका सद्भाव मान लेने में कोई विरोध नहीं भाता है।
__ अपर्याप्त मनुष्यों में अपर्याप्तिका कोई प्रतिपक्षी नहीं होनेसे और अपर्याप्त मनुष्योंका कथन सुगम होनेसे इस विषयमें कुछ अधिक कहने योग्य नहीं है। इसलिये इस संबन्धमें स्वतंत्ररूपसे नहीं कहा गया है।
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