Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 470
________________ १, १, ११२.] संत-पख्वणाणुयोगद्दारे कसायमग्गणापरूवणं [ ३५१ सकलकषायाभावोऽकषायः । उक्तं च - अप्प-परीभय-बाधण-बंधासंजम-णिमित्त-कोधादी । जेसिं णस्थि कसाया अमला अकसाइणो जीवा' ॥ १७८ ।। कषायाध्वानप्रतिपादनार्थमाह कोधकसाई माणकसाई मायकसाई एइंदिय-प्पहुडि जाव अणियट्टि ति ॥ ११२ ॥ ___ यतीनामपूर्वकरणादीनां कथं कषायास्तित्वमिति चेन, अव्यक्तकपायापेक्षया तथोपदेशात् । सुगममन्यत् ।। लोभस्याध्वाननिरूपणार्थमाह-- संपूर्ण कषायोंके अभावको अकषाय कहते हैं। कहा भी है जिनके, स्वयं अपनेको दूसरेको तथा दोनोंको बाधा देने, बन्ध करने और असंयम करनेमें निमित्तभूत क्रोधादि कषाय नहीं हैं, तथा जो बाह्य और आभ्यन्तर मलसे रहित हैं ऐसे जीवोंको अकषाय कहते हैं ॥१७॥ अब कषायमार्गणाके विशेष प्रतिपादन करनेके लिये सूत्र कहते हैं___ एकेन्द्रियसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानतक क्रोधकवायी, मानकषायी और मायाकषायी जीव होते हैं ॥ ११२ ॥ . शंका-अपूर्वकरण आदि गुणस्थानवाले साधुओंके कषायका अस्तित्व कैसे पाया जाता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, अव्यक्त कषायकी अपेक्षा वहां पर कषायोंके अस्तित्वका उपदेश दिया है। शेष कथन सुगम है । अब लोभकषायके विशेष प्ररूपण करनेके लिये सूत्र कहते हैं चउविहो भणिदो॥ कसायपहुड. लोहो हलिदखंजणकद्दमकिमिरागसामाणो । क. ग्रं. १. २०. १ गो. जी. २८९. यद्यपि उपशांत कषायादिचतुर्गुणस्थानवर्तिनोऽपि अकषाया अमलाश्च यथासंभवं द्रव्यभावमलरहिताः संति तथापि तेषां गुणस्थानप्ररूपणयैव अकषायत्वसिद्धिरस्तीति ज्ञातव्यं । तद्यथा, कस्यचिजीवस्य क्रोधादिकषायः स्वस्यैव बन्धनहेतुः स्वशिरोभिघातादिबाधाहेतुः हिंसाद्यसंयमहेतुश्च भवति । कस्यचिज्जीवस्य क्रोधादिकषायः परस्य स्वशवादेर्वाधनवंबनासंयमहेतुर्भवति । कस्यचित्कामुकादिजीवस्य क्रोधादिकवायः स्वपरयोरपि यथासंभवं वाधनबन्धनासंयमहेतुर्भवति इति विभागः लोकानुसारेण आगमानुसारेण च दृष्टव्यः । जी.प्र. टी. २ कषायानुवादेन क्रोधमानमायास मिथ्यादृष्टयादीनि अनिवृत्तिबादरस्थानान्तानि सन्ति । स. सि. १. ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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