Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ११९. ]
संत- परूवणाणुयोगद्दारे णाणमग्गणापरूवणं
[ ३६३
न्यायात् नापर्याप्तिविशिष्टं देवनारकत्वं विभङ्गनिबन्धनमपि तु पर्याप्तिविशिष्टमिति । ततो नापर्याप्तकाले तदस्तीति सिद्धम् ।
इदानीं सम्यग्मिथ्यादृष्टिज्ञानप्रतिपादनार्थमाह
सम्मामिच्छाइट्टि-ड्डाणे तिण्णि वि णाणाणि अण्णाणेण मिस्साणि । आभिणिबोहियणाणं मदि - अण्णाणेण मिस्तयं सुदणाणं सुद- अण्णाणेण मिस्तयं ओहिणाणं विभंगणाणेण मिस्सयं । तिष्णि वि णाणाणि अण्णाणेण मिस्साणि वा इदि ॥ ११९ ॥
अत्रैकवचननिर्देशः किमिति क्रियत इति चेत् कथं च न क्रियते, यतस्त्रीण्य - ज्ञानानि ततो नैकवचनं घटत इति न, अज्ञाननिबन्धन मिथ्यात्वस्यैकत्वतोऽज्ञानस्याप्येकत्वाविरोधात् । यथार्थश्रद्धानुविद्धावगमो ज्ञानम्, अयथार्थश्रद्धानुविद्धावगमोऽज्ञानम् । एवं च सति ज्ञानाज्ञानयोर्भिन्नजीवाधिकरणयोर्न मिश्रणं घटत इति चेत्सत्यमेतदिष्टत्वात् । किन्त्वत्र सम्यग्मिथ्यादृष्टावेवं मा ग्रहीः यतः सम्यग्मिथ्यात्वं नाम कर्म न तन्मिथ्यात्वं
करते हैं' इस न्यायके अनुसार अपर्याप्त अवस्थासे युक्त देव और नारक पर्याय विभंगज्ञानका कारण नहीं है। किंतु पर्याप्त अवस्था से युक्त ही देव और जारक पर्याय विभंगज्ञानका कारण है, इसलिये अपर्याप्त कालमें विभंगज्ञान नहीं होता है यह बात सिद्ध हो जाती है ।
अब सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में ज्ञानके प्रतिपादन करने के लिये सूत्र कहते हैं
सम्यग्मिध्यादृष्टि गुणस्थानमें आदिके तीनों ही ज्ञान अज्ञानसे मिश्रित होते हैं । आभिनिबोधिकज्ञान मत्यज्ञानसे मिश्रित होता है। श्रुतज्ञान श्रुताज्ञानसे मिश्रित होता है । अवधिज्ञान विभंगशानसे मिश्रित होता है । अथवा तीनों ही अज्ञान ज्ञानसे मिश्रित होते हैं ॥ ११९ ॥ शंका – सूत्र में अज्ञान पदका एकवचन निर्देश क्यों किया है ?
प्रतिशंका - एकवचन निर्देश क्यों नहीं करना चाहिये ?
शंका- क्योंकि, अज्ञान तीन हैं, इसलिये उनका बहुवचनरूपसे प्रयोग बन जाता है ? समाधान नहीं, क्योंकि, अज्ञानका कारण मिथ्यात्व एक होनेसे अज्ञानको भी एक मान लेने में कोई विरोध नहीं आता है ।
शंका - यथार्थ श्रद्धासे अनुविद्ध अवगमको ज्ञान कहते हैं और अयथार्थ श्रद्धासे अनुविद्ध अवगमको अज्ञान कहते हैं। ऐसी हालत में भिन्न भिन्न जीवोंके आधारसे रहनेवाले ज्ञान और अज्ञानका मिश्रण नहीं बन सकता है ?
समाधान - यह कहना सत्य है, क्योंकि, हमें यही इष्ट है। किंतु यहां सम्यग्मिथ्या. Refer गुणस्थान में यह अर्थ ग्रहण नहीं करना चाहिये, क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्व कर्म मिथ्यात्व
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