Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
छक्खंडागमे जीववाणं
[१, १, १३६. आदा णाण-पमाणं णाणं णेय-प्पमाणमुद्दिष्टं । णेयं लोआलोअं तम्हा णाणं तु सव्व-गयं ॥ १९८ ॥ एय-दवियम्मि जे अत्थ-पज्जया वयण-पज्जया वावि ।
तीदाणागय-भूदा तावदियं तं हवइ दव्यं ॥ १९९ ॥ इदि लेश्याद्वारेणजीवपदार्थसत्त्वान्वेषणायाह
लेस्साणुवादेण अस्थि किण्हलेस्सिया णीललेस्सिया काउलेस्सिया तेउलेस्सिया पम्मलेस्सिया सुक्कलेस्सिया अलेस्सिया चेदि ॥ १३६॥
__ लेश्या इति किमुक्तं भवति ? कर्मस्कन्धेरात्मानं लिम्पतीति लेश्या । कषायानुरञ्जितैव योगप्रवृत्तिलेश्येति नात्र परिगृह्यते सयोगकेवलिनोऽलेश्यत्वापत्तेः । अस्तु चेन्न, 'शुक्ललेश्यः सयोगकेवली' इति वचनव्याघातात् । लेश्या नाम योगः
_ आत्मा ज्ञानप्रमाण है, ज्ञान ज्ञेयप्रमाण है, शेय लोकालोकप्रमाण है, इसलिये ज्ञान सर्वगत कहा है ॥ १९८॥
एक द्रव्यमें अतीत, अनागत और गाथामें आये हुए 'अपि' शब्दसे वर्तमानपर्यायरूप जितनी अर्थपर्याय और व्यंजनपर्याय हैं तत्प्रमाण वह द्रव्य होता है ॥ १९९॥ ' अब लेश्यामार्गणाद्वारा जीवपदार्थके अस्तित्वके अन्वेषण करनेके लिये सूत्र कहते हैं
लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्या, नाललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या और अलेश्यावाले जीव हैं ।। १३६ ।।।
शंका-'लेश्या' इस शब्दसे क्या कहा जाता है ? समाधान-जो कर्मस्कंधसे आत्माको लिप्त करती है उसे लेश्या कहते हैं।
यहांपर 'कषायसे अनुरंजित योगप्रवृत्तिको लेश्या कहते हैं' यह अर्थ नहीं ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, इस अर्थके ग्रहण करनेपर सयोगिकेवलीको लेश्यारहितपनेकी आपत्ति प्राप्त होती है।
शंका- यदि सयोगिकेवलीको लेश्यारहित मान लिया जावे तो क्या हानि है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, ऐसा मान लेनेपर 'सयोगिकेवलीके शुक्ललेश्या पाई १ प्रवच. १, २३.
२ गो. जी. ५८२. स. त. १.३३. . ३ लिश्यते प्राणी कर्मणा यया सा लेश्या । यदाह, श्लेष इव वर्णबन्धस्य कर्मबन्धस्थितिविधाभ्यः । स्था. १. ठा. ज्ञा.। लिश्यते श्लिष्यते कर्मणा सह आत्मा अनयेति लेश्या । कर्म. ४. कर्मः । कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात्परिणामो य आत्मनः । स्फटिकस्येव तत्रायं लेश्याशब्दः प्रवर्तते ॥ १ ॥ प्रज्ञा. १७. पद.। (अभि. रा. को. लेस्सा.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org