Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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विशेष टिप्पण
सूचना-प्रथम संख्यासे पृष्ठ और दूसरीसे पंक्तिका तात्पर्य है। पृ. पं. 'बारह-अंगग्गिज्झा' में ' गिज्जा' पाठ भी प्रतियों में मिलता है । इस गाथासे कुछ ... ११. मिलती जुलती एक गाथा वसुनन्दिश्रावकाचारमें निम्न प्रकारसे पाई जाती है
बारह-अंगंगी जा सण-तिलया चरित्त-वत्थ-हरा ।
चोद्दस-पुवाहरणा ठावेयव्वा य सुयदेवी ॥३९१॥ ३९ १०. 'देहिंतो कय' इतना पाठ आराकी प्रतिमें नहीं है, और इस पाठके न होनेसे अर्थका
सामञ्जस्य भी ठीक बैठता है, किन्तु पाठ-निश्चय करते समय आराकी प्रति हमारे सामने न होनेसे हम उसे छोड़ नहीं सके और किसी प्रकार अर्थ-संगति बिठलाई गई । पर जान पड़ता है कि अ. और क. प्रतियोंमें वह आगेकी गाथा नं. १९ के '(जिणिं-) देहिं तो कय' पाठसे लिपिकारों के दृष्टि-दोषसे आगया है। ऐसे लिपि-दोष
इन सभी प्रतियोंमें अनेक हैं । (देखिये प्रतियोंके पाठ भेद) . ६७ ५. 'महिमाएं मिलियाणं' से यह स्पष्ट नहीं होता कि महिमा एक नगरीका नाम था
जहां वह मुनि-संमेलन हुआ । इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतारमें भी महिमाका उल्लेख भ्रामक है। यथा, देशेन्द्रदेशनामनि वेणाकतटीपुरे महामहिमासमुदितमुनीन् प्राति ब्रह्मचारिणा प्रापयलेखम ॥ इस पद्यमें देशेन्द्रदेश, 'देशान्ध्रदेश का अशुद्ध रूप ज्ञात होता है। 'महामहिमा-समुदितमुनीन् ' का 'महोत्सवनिमित्त सम्मिलित मुनि' भी हो सकता है। प्रस्तुत ग्रंथके पृ. २९ पर 'जिनमहिम-सम्बद्धकालोऽपि मङ्गलं यथा नन्दीश्वरदिवसादिः' में 'महिम' का अर्थ उत्सव होता है। वसुनन्दिश्रावकाचारमें भी 'महिम' शब्द नन्दीश्वर उत्सवके अर्थमें आया है यथा
___ विविहं करेइ महिमं नंदीसर-चेइय-गिहेसु ॥ ४०७ ॥ इसके अनुसार ' महिमाए मिलियाणं ' का अर्थ · नन्दीश्वर उत्सवके लिये सम्मिलित' भी हो सकता है। किन्तु पं. जुगलकिशोरजी मुख्तारने अपनी श्रुतावतार कथा (जै. सि. भा. ३.४) में महिमाको नगरीका नाम अनुमान किया है और उसे सतारा जिलेके महिमानगढ़से अभिन्न होनेका संकेत किया है। इसी अनुसार अनुवादमें उसे नगरीका द्योतक स्वीकार कर लिया गया है। किन्तु है यह प्रश्न अभी
भी विचारणीय । ७१ ५. जिणवालियं दहण पुप्फयंताइरियो वणवासविसयं गदो। यहां 'दट्टण' का अर्थ
अनुवादमें देखकर ' (दृष्ट्वा) किया गया है। किन्तु इसका अर्थ ' देखनेके लिये (दृष्टुम् ) भी हो सकता है । (देखो भूमिका पृ. १९, पुष्पदन्त और जिनपालित)
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