Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 523
________________ १०४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, १, १६३. न हि स्वतोऽसमर्थोऽन्यतः समर्थो' भवत्यतिप्रसङ्गात् । अथ स्यादर्धतृतीयशब्देन किमु द्वीपो विशिष्यते उत समुद्र उत द्वावपीति ? नान्त्योपान्त्यविकल्पौ मानुषोत्तरात्परतोऽपि मनुष्याणामस्तित्वप्रसङ्गात् । अस्तु चेन्न, द्वीपत्रये मनुष्याणां सत्त्वप्रसङ्गात् । न तदपि सूत्रविरोधात् । नादिविकल्पोऽपि समुद्राणां संख्यानियमाभावतः सर्वसमुद्रेषु तत्सत्वप्रसङ्गादिति । ___ अत्र प्रतिविधीयते । नान्त्योपान्त्यविकल्पोक्तदोषाः समाढौकन्ते, तयोरनभ्युपगमात् । न प्रथमविकल्पोक्तदोषोऽपि द्वीपेष्वर्धेतृतीयसंख्येषु मनुष्याणामस्तित्वनियमे सति शेषद्वीपेषु मनुष्याभावसिद्धिवन्मानुषोत्तरत्वं प्रत्यविशेषतः शेषसमुद्रेषु तदभावसिद्धः । नाशेषसमुद्राणां मानुषोत्तरत्वमसिद्धमारात्तनद्वीपभागस्याप्यन्यथा मानुषोत्तरत्वानुपपत्तेः । ततः सामर्थ्याद् द्वयोः समुद्रयोः सन्तीत्यनुक्तमप्यवगम्यते । दूसरोके संबन्धसे भी समर्थ नहीं हो सकता है। यदि ऐसा न माना जावे तो अतिप्रसंग दोष आ जायगा । अतः मानुषोत्तरके उस ओर मनुष्य नहीं पाये जाते हैं। शंका-- अर्धतृतीय शब्द द्वीपका विशेषण है या समुद्रका अथवा दोनोंका ? इनमेंसे अन्तके दो विकल्प तो बराबर नहीं हैं, क्योंकि, वैसा मान लेने पर मानुषोत्तर पर्वतके उस तरफ भी मनुष्योंके अस्तित्वका प्रसंग आ जायगा। यदि यह कहा जावे कि अच्छी बात है, मानुषोत्तर के परे भी मनुष्य पाये जावें सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, इसप्रकार तो तीन द्वीपों में मनुष्योंके सद्भावका प्रसंग आता है। और वैसा माना नहीं जा सकता, क्योंकि. सूत्रसे विरोध आता है । इसीप्रकार पहला विकल्प भी नहीं बन सकता है, क्योंकि, इसप्रकार द्वीपोंकी संख्याका नियम होने पर भी समुद्रोंकी संख्याका कोई नियम नहीं बनता है, इसलिये समस्त समुद्रोंमें मनुष्योंके सद्भावका प्रसंग प्राप्त होता है? समाधान--दूसरे और तीसरे विकल्पमें दिये गये दोष तो प्राप्त ही नहीं होते हैं, क्योंकि, परमागममें वैसा माना ही नहीं गया है। इसप्रिकार प्रथम विकल्पमें दिया गया दोष भी प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि, ढाई द्वीपमें मनुष्यों के अस्तित्वका नियम हो जानेपर शेषके द्वीपों में जिसप्रकार मनुष्योंके अभावकी सिद्धि हो जाती है उसीप्रकार शेष समुद्रोंमें भी मनुप्योंका अभाव सिद्ध हो जाता है, क्योंकि, ढाई द्वीपोंको छोड़कर शेष द्वीपोंकी तरह दो समुद्रोंके अतिरिक्त शेष समुद्र भी मानुषोत्तरसे परे हैं, अतः शेष द्वीपोंकी तरह शेष समुद्रोंके भी मानुषोत्तरसे परे होनेमें कोई विशेषता नहीं है। इसप्रकार शेषद्वीपोंके लिये जो नियम लागू है वही शेष समुद्रोंके लिये भी हो जाता है। इसलिये शेष समुद्रोंमें मनुष्योंका अभाव है यह बात निश्चित हो जाती है। शेषके संपूर्ण समुद्रोंका मानुषोत्तर पर्वतके उस तरफ होना असिद्ध भी नहीं है, अन्यथा समीपवर्ती द्वीपभागके भी मानुषोत्तर पर्वतके उस तरफ होना सिद्ध नहीं होगा। इसलिये सामर्थ्य से दो समुद्रों में मनुष्य पाये जाते हैं, यह बात बिना कहे ही जानी जाती है। र प्रतिषु स्वतोऽसमर्थमन्यतः समर्थ ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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