Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, १११.] संत-परूव णाणुयोगद्दारे कसायमग्गणापरूवणं
[३४९ इति भवति तस्य शब्दपृष्ठतोऽर्थप्रतिपत्तिप्रवणत्वात् । अर्थनयाश्रयणे क्रोधकषायीति स्थाच्छन्दतोऽर्थस्य भेदाभावात् । कषायिचातुर्विध्यात्कषायस्य चातुर्विध्यमवगम्यत इति वा। तथोपदिष्टमेवानुवदनमनुवादः कषायस्य अनुवादः कषायानुवादः तेन कषायानुवादेन। प्रसिद्धस्यानुकथनमनुवादः । सिद्धासिद्धाश्रया हि कथामार्गा इति न्यायादनुवादोऽनर्थकोऽ. नधिगतार्थाधिगन्तृत्वाभावाद्वेति न, प्रवाहरूपेणापौरुषेयत्वतस्तीर्थकृदादयोऽस्य व्याख्यातार एव न कर्तार इति ज्ञापनार्थत्वात् । कः क्रोधकबायः ? रोष आमर्षः संरम्भः । को मानकषायः ? रोषेण विद्यातपोजात्यादिमदेन वान्यस्यानवनतिः । निकृतिर्वञ्चना मायाकषायः । गर्दा कासा लोभः । उक्तं च -
लिये जीवसे वे अभिन्न है । फिर भी धर्म धर्मीभेदसे उनमें भेद बन जाता है, अतएव भिन्न निर्देश करने में कोई आपत्ति नहीं आती है।
अथवा, शब्दनयका आश्रय करने पर 'क्रोधकषाय' इत्यादि प्रयोग बन जाते हैं, क्योंकि, शब्दनय शब्दानुसार अर्थशान करनेमें समर्थ है । और अर्थनयका आश्रय करने पर क्रोधकषायी' इत्यादि प्रयोग होते हैं, क्योंकि, इस नयकी दृष्टिमें शब्दसे अर्थका कोई भेद नहीं है। अथवा, चार प्रकारके कषायवान् जीव होते हैं । इससे कषाय भी चार प्रकारकी हैं, ऐसा ज्ञान हो जाता है। इसलिये सूत्रमें 'क्रोधकषायी' इत्यादि पदोंका प्रयोग किया है।।
जिसप्रकार उपदेश दिया है उसीप्रकारके कथन करनेको अनुवाद कहते हैं। कषायके अनुवादको कषायानुवाद कहते हैं। उससे अर्थात् कषायानुवादसे जीव पांच प्रकारके होते हैं। अथवा, प्रसिद्ध अर्थका अनुकूल कथन करनेको अनुवाद कहते हैं।
• शंका - 'कथामार्ग अर्थात् कथनपरंपराएं प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध इन दोनोंके आश्रयसे प्रवृत्त होती हैं ' इस न्यायके अनुसार यहां पर अनुवाद अर्थात् केवल प्रसिद्ध अर्थका अनुकूल कथन करना निष्फल है, इससे अनधिगत अर्थका ज्ञान नहीं होता है?
समाधान--नहीं, क्योंकि, यह कथन प्रवाहरूपसे अपौरुषेय होनेके कारण तीर्थकर आदि इसके केवल ब्याख्यान करनेवाले ही हैं कर्ता नहीं हैं, इस बातका शान करानेके लिये अनुवाद पदका कहना अनर्थक नहीं है।
शंका-क्रोधकषाय किसे कहते है? समाधान-रोष, आमर्ष और संरम्भ इन सबको क्रोध कहते है। शंका--मानकषाय किसे कहते हैं?
समाधान-रोषसे अथवा विद्या, तप और जाति आदिके मदसे दूसरेके तिरस्काररूप भावको मान कहते हैं।
निकृति या वंचनाको मायाकषाय कहते हैं। गर्दा या आकांक्षाको लोभ कहते हैं कहा भी है
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