Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, १०१. ]
वेदनं वेदः, स्त्रियो वेदः स्त्रीवेदः । उक्तं च
संत-परूवणाणुयोगद्दारे वेदमग्गणापरूवणं
छादेदि सयं दोसेण यदो छादइ परं हि दोसेण । छादणसीला जम्हा तम्हा सा वणिया इत्थी' ॥ १७० ॥
पुरुगुणेषु पुरुभोगेषु च शेते स्वपितीति पुरुषः । सुषुप्त पुरुषवदनुगत गुणोऽप्राप्तभोगश्च यदुदयावो भवति स पुरुषः अङ्गनाभिलाष इति यावत् । पुरुगुणं कर्म शेते करोतीति वा पुरुषः । कथं स्त्र्यभिलाषः पुरुगुणं कर्म कुर्यादिति चेन्न तथाभूतसामर्थ्यानुविद्धजीवसहचरितत्वादुपचारेण जीवस्य तत्कर्तृत्वाभिधानात् । तस्य वेदः पुंवेदः ।
उक्तं च
पुरु-गुण- भोगे सेदे करेदि लोगम्हि पुरुगुणं कम्मं ।
पुरु उत्तमो य जम्हा तुम्हा सो वणिदो पुरिसो ॥ १७१ ॥ न स्त्री न पुमान्नपुंसकमुभयाभिलाष इति यावत् । उक्तं च
सकता है ?
कहते हैं । कहा भी है
जो मिथ्यादर्शन, अज्ञान और असंयम आदि दोषोंसे अपनेको आच्छादित करती है। और मधुर संभाषण, कटाक्ष-विक्षेप आदिके द्वारा जो दूसरे पुरुषों को भी अब्रह्म आदि दोषोंसे आच्छादित करती है, उसको आच्छादनशील होनेके कारण स्त्री कहा है ॥ १७० ॥
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जो उत्कृष्ट गुणों में और उत्कृष्ट भोगों में शयन करता है उसे पुरुष कहते हैं । अथवा, जिस कर्मके उदयसे जीव, सोते हुए पुरुषके समान गुणोंसे अनुगत होता है और भोगोंको प्राप्त नहीं करता है उसे पुरुष कहते हैं । अर्थात् स्त्रीसंबन्धी अभिलाषा जिसके पाई जाती है उसे पुरुष कहते हैं । अथवा, जो श्रेष्ठ कर्म करता है वह पुरुष है ।
शंका -- जिसके स्त्रीविषयक अभिलाषा पाई जाती है वह उत्तम कर्म कैसे कर
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समाधान- नहीं, क्योंकि, उत्तम कर्मको करनेरूप सामर्थ्य से युक्त जीवके स्त्रीविषयक अभिलाषा पाई जाती है, अतः वह उत्तम कर्मको करता है ऐसा कथन उपचारसे किया है। कहा भी है
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जो उत्तम गुण और उत्तम भोगों में स्वामीपनैका अनुभव करता है, जो लोकमें उत्तम गुणयुक्त कार्य करता है और जो उत्तम है उसे पुरुष कहा है ॥ १७१ ॥
जो न स्त्री है और न पुरुष है उसे नपुंसक कहते हैं, अर्थात् जिसके स्त्री और पुरुष - विषयक दोनों प्रकार की अभिलाषा पाई जाती है उसे नपुंसक कहते हैं । कहा भी है
१ गो. जी. २७४. नयतः मृदुभाषितस्निग्धविलोकन ानुकुल वर्तनादि कुशल व्यापारः । जी. प्र. टी. २ गो. जी. २७३. पुरुगुणे सम्यग्ज्ञानाधिकगुणसमूहे । पुरुभोगे नरेन्द्रनागेन्द्र देवेन्द्राद्यधिकभोगचये । पुरुगुणं कर्म धर्मार्थकाममोक्षलक्षण पुरुषार्थ साधन रूप दिव्यानुष्ठानं । पुरुतमे परमेष्ठिपदे । जी. प्र. टी.
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