Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३३८] छंक्खडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ९८. भवत्वत्रोभयावस्थासु गुणत्रयास्तित्वं तस्य तेषूत्पत्तिं प्रति विरोधासिद्धेः। सनत्कुमारादुपरि न स्त्रियः समुत्पद्यन्ते सौधर्मादाविव तदुत्पत्त्यप्रतिपादनात् । तत्र स्त्रीणामभावे कथं तेषां देवानामनुपशान्ततत्सन्तापानां सुखमिति चेन, तत्स्त्रीणां सौधर्मकल्पोपपत्तेः । तर्हि तत्रापि स्त्रीणामस्तित्वमभिधातव्यमिति चेन्न, अन्यत्रोत्पन्नानामन्यलेश्यायुबलानां स्त्रीणां तत्र सत्त्वविरोधात् । तत्र भवनवासिनो व्यन्तरज्योतिष्का: सौधर्मेशानदेवाश्च मनुष्या इव कायप्रवचाराः । प्रवीचारो मैथुनसेवनम्, काये प्रवीचारो येषां ते कायप्रवीचाराः । सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः स्पशेप्रवीचाराः, तत्रतनदेवा देवाङ्गनास्पर्शनमात्रादेव परां प्रीतिमुपलभन्ते इति यावत् । तथा देव्योऽपि । यतो ब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्टेषु देवाः दिव्याङ्गनाशृङ्गाराकारविलासचतुरमनोज्ञवेषरूपालोकमात्रादेव
शंका-सौधर्म स्वर्गसे लेकर उपरिम अवेयकके उपरिमभाग तकके देवोंकी पर्याप्त और अपर्याप्त इन दोनों अवस्थाओं में प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ गुणस्थानोंका अस्तित्व पाया जाता है, यह कहना तो ठीक है, क्योंकि, उन तीन गुणस्थानोंकी उक्त देवोंमें उत्पत्तिके प्रति विरोध है। किंतु सनत्कुमार स्वर्गसे लेकर ऊपर स्त्रियां उत्पन्न नहीं होती हैं, क्योंकि, सौधर्म और ऐशान स्वर्गमें देवांगनाओंके उत्पन्न होनेका जिसप्रकार कथन किया गया है, उसप्रकार आगेके स्वर्गों में उनकी उत्पत्तिका कथन नहीं किया गया है । इसलिये वहां स्त्रियोंके अभाव रहने पर, जिनका स्त्रीसंबन्धी संताप शान्त नहीं हुआ है ऐसे देवोंके उनके विना सुख कैसे हो सकता है?
समाधान- नहीं, क्योंकि, सनत्कुमार आदि कल्प-संबन्धी स्त्रियोंकी सौधर्म और ऐशान स्वर्गमें उत्पत्ति होती है।
शंका- तो सनत्कुमार आदि कल्पोंमें भी स्त्रियोंके अस्तित्वका कथन करना चाहिये?
समाधान--नहीं, क्योंक, जो दूसरी जगह उत्पन्न हुई हैं, तथा जिनकी लेश्या, आयु और बल सनत्कुमारादि कल्पोंमें उत्पन्न हुए देवोंसे भिन्न प्रकारके हैं ऐसी स्त्रियोंका सनत्कु मारादि कल्पोंमें उत्पत्तिकी अपेक्षा अस्तित्व मानने में विरोध आता है।
उन देवोंमें भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देव तथा सौधर्म और ऐशान कल्पवासी देव मनुष्योंके समान शरीरसे प्रवीचार करते हैं। मैथुनसेवनको प्रवीचार कहते हैं। जिनका कायमें प्रवीचार होता है उन्हें कायसे प्रवीचार करनेवाले कहते हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पमें देव स्पर्शसे प्रवचिार करते हैं। अर्थात् इन दोनों कल्पोंमें रहनेवाले देव देवांगनाओंके स्पर्शमात्रसे ही अत्यन्त प्रीतिको प्राप्त होते हैं। इसीप्रकार वहांकी दोवयां भी देवोंके स्पर्शमात्रसे अत्यन्त प्रीतिको प्राप्त होती हैं। क्योंकि ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ट कल्पोंमें रहनेवाले देव अपनी देवांगनाओंके श्रृंगार, आकार, विलास, यथायोग्य तथा मनोज्ञ वेष तथा रूपके अवलोकन
शादिव्यवहाररूपस्तमुपगाः प्राप्ताः कल्पोपगाः सौधर्मेशानादिदेवलोकनिवासिनः । यथोक्तरूपं कल्पमतीताः अतिक्रान्ताः कल्पातीताः । प्रज्ञा. १ पद. [ अभि. रा. को. वेमाणिय.]
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