Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२४४ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, १, ३३.
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सति जिघ्रतीति घ्राणम् । कोऽस्य विषयः ? गन्धः । अयं गन्धशब्दः कर्मसाधनः । कुतः १ यदा द्रव्यं प्राधान्येन विवक्षितं तदा न ततो व्यतिरिक्ताः स्पर्शादयः केचन सन्तीति । एतस्यां विवक्षायां कर्मसाधनत्वं स्पर्शादीनामवसयिते, गन्ध्यत इति गन्धो वस्तु । यदा तु पर्यायः प्राधान्येन विवक्षितस्तदा भेदोपपत्तेः औदासीन्यावस्थितभावकथनाद्भावसाधनत्वं स्पर्शादीनां युज्यते, गन्धनं गन्ध इति । कुत एतेषामुत्पत्तिरिति चेद्वीर्यान्तरायस्पर्शनरसनघ्राणेन्द्रियावरणक्षयोपशमे सति शेषेन्द्रिय सर्वघातिस्पर्धीकोदये चाङ्गोपाङ्गनामलाभावष्टम्भे त्रीन्द्रियजातिकर्मोदयवशवर्तितायां च सत्यां स्पर्शनरसन - घ्राणेन्द्रियाण्याविर्भवन्ति' ।
चत्वारि इन्द्रियाणि येषां ते चतुरिन्द्रियाः । के ते ? मशकमक्षिकादयः । उक्तं च
शंका - प्राण-इन्द्रियका विषय क्या है ?
समाधान - इस इन्द्रियका विषय गन्ध है ।
यह गन्ध शब्द कर्मसाधन है, क्योंकि, जिस समय प्रधानरूपसे द्रव्य विवक्षित होता है, उससमय द्रव्यसे भिन्न स्पर्शादिक कुछ भी नहीं रहते हैं, इसलिये इस विवक्षा में स्पर्शादिकके कर्मसाधन समझना चाहिये । जैसे, 'जो सूंघा जाय इसप्रकारकी निरुक्ति करने पर गन्ध द्रव्यरूप ही पड़ता है । तथा जिससमय प्रधानरूपसे पर्याय विवक्षित होती है, उस समय द्रव्यसे पर्यायका भेद बन जाता है, अतएव उदासीनरूपसे अवस्थित जो भाव है, वही कहा जाता है । इसतरह स्पर्शादिकके भावसाधन भी बन जाता है । जैसे, सूंघनेरूप क्रियाधर्मको गन्ध कहते हैं ।
शंका -- इन तीनों इन्द्रियोंकी उत्पत्ति किस कारण से होती है ?
समाधान - वीर्यान्तराय और स्पर्शन, रसना तथा घ्राण-इन्द्रियावरण के क्षयोपशमके होने पर, शेष इन्द्रियावरण कर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदय होने पर, आंगोपांग नामकर्मके उदयके आलम्बन होने पर और त्रीन्द्रियजाति नामकर्मके उदयकी वशवर्तिता के होने पर स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रियां उत्पन्न होती हैं ।
जिनके चार इन्द्रियां पाई जाती हैं वे चतुरिन्द्रिय जीव होते हैं । शंका- वे चतुरिन्द्रिय जीव कौन कौन है ?
समाधान - मच्छर, मक्खी आदि चतुरिन्द्रिय जीव हैं । कहा भी है
१ प्रबन्धोऽयं त. रा. वा. २. १९-२० वा. १-१ व्याख्याभ्यां समानः ।
२ से किं तं चउरिदिय - संसारस मावन्न जीवपन्नत्रणा ? २ अणेगविहा पन्नता । तं जहां, अंधिय-पत्तिय मच्चिय-मसगा कीडे तहा पयंगे य । टंकुण-कुक्कड कुक्कुह-नंदावत्ते य सिंगिरडे | किण्हपत्ता, नीलपत्ता, लोहियपत्ता, हालिपत्ता, सुकिल्लपत्ता, चित्तपक्खा, विचिचपक्खा, ओहंजलिया, जलचारिया, गंभीरा, श्रीणिया, तंतवा,
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