Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवाणं
[१, १, ५६. कार्मणौदारिकस्कन्धाभ्यां जनितवीर्यात्तत्परिस्पन्दनार्थः प्रयत्नः औदारिकमिश्रकाययोगः । उदारः पुरुः महानित्यर्थः, तत्र भवं शरीरमौदारिकम् । अथ स्थान महत्त्व मौदारिकशरीरस्य ? कथमेतदवगम्यते ? वर्गणासूत्रात् । किं तद्वर्गणासूत्रमिति चेदुच्यते 'सव्वत्थोवा ओरालिय-सरीर-दव्व-वग्गणा-पदेसा, वेउब्धिय-सरीर-दव्व-वग्गणा-पदेसा असंखेज्जगुणा, आहार-सरीर-दव्व-वग्गणा-पदेसा असंखेजगुणा, तेया-सरीर-दव्य-वग्गणा-पदेसा अणतगुणा, भासा-दव्य-वग्गणा-पदेसा अणंतगुणा, मण-दव्व-वग्गणा-पदेसा अणंतगुणा, कम्मइय-सरीरदव्व-वग्गणा-पदेसा अणंतगुणात्ति।' न, अवगाहनापेक्षया औदारिकशरीरस्य महत्त्वोपपत्तेः। यथा 'सव्वत्थोवा कम्मइय-सरीर-दव्व-वग्गणाए ओगाहणा, मण-दव्य-वग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा, भासा-दव्व-वग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा, तेया-सरीर-दव्य-वग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा, आहार-सरीर-दव्व-वग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा, वेंउव्विय-सरीर-दव्व-वग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा, ओरालिय-सरीर-दव्व-वग्गणाए
परिस्पन्दका कारणभूत जो प्रयत्न होता है उसे औदारिककाययोग कहते हैं। कार्मण और औदारिक वर्गणाओंके द्वारा उत्पन्न हुए वीर्यसे जीवके प्रदेशों में परिस्पन्दके लिये जो प्रयत्न होता है उसे औदारिकमिश्रकाययोग कहते हैं। उदार, पुरु और महान ये एक ही अर्थ वाचक शब्द हैं । उसमें जो शरीर उत्पन्न होता है उसे औदारिकशरीर कहते हैं।
शंका-औदारिक शरीर महान् है, यह बात नहीं बनती है ? प्रतिशंका-यह कैसे जाना? शंकाका समर्थन-वर्गणासूत्रसे यह बात मालूम पड़ती है। प्रतिशंका-वह वर्गणासूत्र कौनसा है ?
शंकाका समर्थन-जिससे औदारिक शरीरकी महानता सिद्ध नहीं होती है वह वर्गणासूत्र इसप्रकार है, 'औदारिकशरीरद्रव्यसंबन्धी वर्गणाओंके प्रदेश सबसे थोड़े हैं। उससे असंख्यातगुणे वैक्रियकशरीरद्रव्यसंबन्धी वर्गणाके प्रदेश हैं। उससे असंख्यातगणे आहारकशरीरद्रव्यसंबन्धी वर्गणाके प्रदेश हैं। उससे अनन्तगुणे तैजसशरीरद्रव्यसंबन्धी वर्गणाके प्रदेश हैं । उससे अनन्तगुणे भाषाद्रव्यवर्गणाके प्रदेश हैं । उससे अनन्तगुणे मनोद्रव्यवर्गणाके प्रदेश हैं, और उससे अनन्तगुणे कार्मणशरीरद्रव्यवर्गणाके प्रदेश हैं।
समाधान-प्रकृतमें ऐसा नहीं है, क्योंकि, अवगाहनाको अपेक्षा औदारिक शरीरकी स्थूलता बन जाती है । जैसे कि कहा भी है
'कार्मणशरीरसंबन्धी द्रव्य-वर्गणाकी अवगाहना सबसे सूक्ष्म है। मनोद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना इससे असंख्यातगुणी है । भाषाद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना इससे असं. ख्यातगुणी है । तैजसशरीरसंबन्धी द्रव्य-वर्गणाकी अवगाहना इससे असंख्यातगुणी है। आहारशरीरसंबन्धी द्रव्य वर्गणाकी अवगाहना इससे असंख्यातगुणी है । वैक्रियकशरीरसंबन्धी द्रव्य-वर्गणाकी अवगाहना इससे असंख्यातगुणी है । औदारिकशरीरसंबन्धी
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