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३१२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,१, ७१. इन्द्रियपर्याप्तिः आनापानपर्याप्तिः भाषापर्याप्तिः मन.पर्याप्तिरिति । एतासामेवानिष्पत्तिरपर्याप्तिः। ताश्च षड् भवन्ति, आहारापर्याप्तिः शरीरापर्याप्तिः इन्द्रियापयाप्तिः आनापानापर्याप्तिः भाषापर्याप्तिः मनोऽपर्याप्तिरिति । एतासां द्वादशानामपि पर्याप्तीनां स्वरूपं प्रागुक्तमिति पौनरुक्तिभयादिह नोच्यते ।
इदानी तासामाधारप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमवोचत्सण्णिमिच्छाइट्ठि-प्पहुडि जाव असंजदसम्माइहि त्ति ॥७१॥
सम्यग्मिथ्यादृष्टीनामपि षट् पर्याप्तयो भवन्तीति चेन्न, तत्र गुणेऽपर्याप्तकालाभावात् । देशविरताधुपरितनगुणानां किमिति षट् पर्याप्तयो न सन्तीति चेन्न, पर्याप्तिर्नाम षण्णां पर्याप्तीनां समाप्तिः, न सोपरितनगुणेष्वस्ति अपर्याप्तिचरमावस्थायामैकसमयिक्या उपरि सत्त्वविरोधात्
पट्पर्याप्तिश्रवणात् पडेव पर्याप्तयः सन्तीति समुत्पन्नप्रत्ययस्य शिष्यस्यावधारणात्मकप्रत्ययनिराकरणार्थमुत्तरसूत्रमवोचत्पर्याप्ति, भाषापर्याप्ति और मनःपर्याप्ति । इन छह पर्याप्तियोंकी अपूर्णताको ही अपर्याप्ति कहते हैं। अपर्याप्तियां भी छह ही होती हैं, आहार-अपर्याप्ति, शरीर-अपर्याप्ति, इन्द्रियअपर्याप्ति, आनापान-अपर्याप्ति, भाषा-अपर्याप्ति और मन-अपर्याप्ति । इन बारह पर्याप्तियोंका स्वरूप पहले कह आये हैं, इसलिये पुनरुक्ति दूषणके भयसे उनका स्वरूप फिरसे यहां नहीं कहते हैं।
अब उन पर्याप्तियोंके आधारको बतलानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
उपर्युक्त सभी पर्याप्तियां संज्ञी मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानतक होती हैं ॥७१॥
शंका-तो क्या सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवालोंके भी छह पर्याप्तियां होती हैं ? समाधान--नहीं, क्योंकि, उस गुणस्थानमें अपर्याप्त काल नहीं पाया जाता है। शंका-देशविरतादिक ऊपर के गुणस्थानवालोंके छह पर्याप्तियां क्यों नहीं होती हैं ?
समाधान- नहीं, क्योंकि छह पर्याप्तियोंकी समाप्तिका नाम ही पर्याप्ति है और यह समाप्ति चौथे गुणस्थान तक ही होनेसे पांचवें आदि ऊपरके गुणस्थानों में नहीं पायी जाती, क्योंकि, अपर्याप्तिकी आन्तिम अवस्थावर्ती एक समयमें पूर्ण हो जानेवाली पर्याप्तिकी आगेके गुणस्थानों में सत्त्व माननेसे विरोध उत्पन्न होता है।
छह पर्याप्तियोंके सुननेसे जिस शिष्य को यह निश्चय होगया कि पर्याप्तियां छह ही होती हैं, हीनाधिक नहीं, उस शिष्यके ऐसे धारणारूप निश्चयको दूर करनेके लिये आगका सूत्र कहा है
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