Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३१८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ७८. योगोऽपर्याप्तकस्येति न घटामटेदिति चेन्न, अनवगतसूत्राभिप्रायत्वात् । तद्यथा, भवत्वसौ पर्याप्तकः औदारिकशरीरगतषट्पर्याप्त्यपेक्षया, आहारशरीरगतपर्याप्तिनिष्पत्त्यभावापेक्षया त्वपर्याप्तकोऽसौ । पर्याप्तापर्याप्तत्वयो कत्राक्रमेण संभवो विरोधादिति चेन्न, पर्याप्तापर्याप्तयोगयोरक्रमेणैकत्र न सम्भवः इतीष्टत्वात् । कथं न पूर्वोऽभ्युपगमः इति विरोध इति चेन्न, भूतपूर्वगतन्यायापेक्षया विरोधासिद्धेः । विनष्टौदारिकशरीरसम्बन्धपट्पर्याप्तेरपरिनिष्ठिताहारशरीरगतपर्याप्तेरपर्याप्तस्य कथं संयम इति चेन्न, संयमस्यास्रवनिरोधलक्षणस्य मन्दयोगेन सह विरोधासिद्धेः । विरोधे वा न केवलिनोऽपि समुद्वातगतस्य संयमः तत्राप्यपर्याप्तकयोगास्तित्वं प्रत्यविशेषात् । 'संजदासंजदट्ठाणे
है यह कथन नहीं बन सकता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, ऐसा कहनेवाला आगमके अभिप्रायको ही नहीं समझा है। आगमका अभिप्राय तो इसप्रकार है कि आहारकशरीरको उत्पन्न करनेवाला साधु औदारिक शरीरगत छह पर्याप्तियोंकी अपेक्षा पर्याप्तक भले ही रहा आवे, किन्तु आहारकशरीरसंबन्धी पर्याप्तिके पूर्ण होनेकी अपेक्षा वह अपर्याप्तक है।।
शंका-पर्याप्त और अपर्याप्तपना एकसाथ एक जीवमें संभव नहीं है, क्योंकि, एक- . साथ एक जीवमें इन दोनोंके रहनेमें विरोध आता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, एकसाथ एक जीवमें पर्याप्त और अपर्याप्तसंबन्धी योग संभव नहीं हैं, यह बात हमें इष्ट ही है। - शंका-तो फिर हमारा पूर्व कथन क्यों न मान लिया जाय, अतः आपके कथनमें विरोध आता है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, भूतपूर्व न्यायकी अपेक्षा विरोध असिद्ध है। अर्थात् औदारिक शरीरसंबन्धी पर्याप्तपनेकी अपेक्षा आहारकमिश्र अवस्थामें भी पर्याप्तपनेका व्यवहार किया जा सकता है।
शंका-जिसके औदारिक शरीरसंबन्धी छह पर्याप्तियां नष्ट हो चुकी हैं, और आहारक शरीरसंबन्धी पर्याप्तियां अभी तक पूर्ण नहीं हुई हैं ऐसे अपर्याप्तक साधुके संयम कैसे हो सकता है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, जिसका लक्षण आश्रवका निरोध करना है ऐसे संयमका मन्दयोग (आहारकमिश्रयोग) के साथ होनेमें कोई विरोध नहीं आता है। यदि इस मन्दयोगके साथ संयमके होनेमें विरोध आता ही है ऐसा माना जावे, तो समुद्धातको प्राप्त हुए केवलीके भी संयम नहीं हो सकेगा, क्योंकि, वहां पर भी अपर्याप्तकसंबन्धी योगका सद्भाव पाया जाता है इसमें कोई विशेषता नहीं है।
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