Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३१४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ७४. इति चेदस्तु, क्वचिद् दृष्टत्वात् । मनसः कार्यत्वेन प्रतिपन्नविज्ञानेन सह तत्रतनविज्ञानस्य ज्ञानत्वं प्रत्यविशेषान्मनोनिबन्धनत्वमनुमीयत इति चेन्न, भिन्नजातिस्थितविज्ञानेन सहाविशेषानुपपत्तेः । न प्रत्यक्षेणाप्येष आगमो बाध्यते तत्र प्रत्यक्षस्य वृत्यभावात् । विकलेन्द्रियेषु मनसोऽभावः कुतोऽवसीयत इति चेदात् । कथमार्षस्य प्रामाण्यमिति चेत्स्वाभाव्यात्प्रत्यक्षस्येव ।
पुनरपि पर्याप्तिसंख्यासत्त्वभेदप्रदर्शनार्थमुत्तरसूत्रमाहचत्तारि पज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ ।। ७४ ।।
केषुचित्प्राणिषु चतस्र एव पर्याप्तयोऽपर्याप्तयो वा भवन्ति । कास्ताश्चतस्र इति चेदाहारशरीरेन्द्रियानापानपर्याप्तयः इति । शेषं सुगमम् ।
चतुर्णामपि पर्याप्तीनामधिपतिजीवप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाह
एइंदियाणं ।। ७५ ॥ वह क्वचित् अर्थात् मनुष्यों में देखा जाता है।
शंका-मनुष्यों में मनके कार्यरूपसे स्वीकार किये गये विज्ञानके साथ विकलेन्द्रियों में होनेवाले विज्ञानकी ज्ञानसामान्यकी अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है, इसलिये यह अनुमान किया जाता है कि विकलेन्द्रियोंका विज्ञान भी मनसे होता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, भिन्न जातिमें स्थित विज्ञानके साथ भिन्न जातिमें स्थित विज्ञानकी समानता नहीं बन सकती है। 'विकलेन्द्रियोंके मन नहीं होता है' यह आगम प्रत्यक्षसे भी बाधित नहीं है, क्योंकि, वहां पर प्रत्यक्षकी प्रवृत्ति ही नहीं होती है।
शंका-विकलेन्द्रियों में मनका अभाव है यह बात किस प्रमाणसे जानी जाती है ? समाधान-आगम प्रमाणसे जाना जाता है कि विकलेन्द्रियोंके मन नहीं होता है। शंका -आर्षको प्रमाण कैसे माना जाय ?
समाधान-जैसे प्रत्यक्ष स्वभावतः प्रमाण है उसीप्रकार आर्ष भी स्वभावतः प्रमाण है।
फिर भी पर्याप्तियोंकी संख्याके अस्तित्वमें भेद बताने के लिये आगेका सूत्र कहते हैंचार पर्याप्तियां और चार अपर्याप्तियां होती हैं ॥ ७४ ॥ किन्हीं जीवों में चार पर्याप्तियां अथवा किन्हींमें चार अपर्याप्तियां होती हैं। शंका-वे चार पर्याप्तियां कौनसी हैं ?
समाधान- आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति और आनापानपर्याप्ति । शेष कथन सुगम है।
चारों पर्याप्तियोंके अधिकारी जीवोंके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंउक्त चारों पर्याप्तियां एकेन्द्रिय जीवोंके होती हैं ॥७५॥
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