Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३०२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, १, ६०. तावदधातिकर्मणां स्थित्यायुष्यस्थितेरसमानता हेतुः, क्षीणकषायचरमावस्थायां सर्वकर्मणां समानत्वाभावात् सर्वेषामपि तत्प्रसङ्गादिति ।।
अत्र प्रतिविधीयते । यतिवृषभोपदेशात्सर्वाघातिकर्मणां क्षीणकषायचरमसमये स्थितेः साम्याभावात्सर्वेऽपि कृतसमुद्धाताः सन्तो निर्वृतिमुपढौकन्ते । येषामाचार्याणां लोकव्यापिकेवलिषु विंशतिसंख्यानियमस्तेषां मतेन केचित्तमुद्धातयन्ति, केचिन्न समुद्धातयन्ति । के न समुद्धातयन्ति ? येषां संसृतिव्यक्तिः कर्मस्थित्या समाना, ते न समुद्धातयन्ति, शेषाः समुद्धातयन्ति । अनिवृत्त्यादिपरिगामेषु समानेषु सत्सु किमिति स्थित्योवैषम्यम् ? न, व्यक्तिस्थितिघातहेतुष्वनिवृत्तपरिणामेषु समानेषु सत्सु संसृतेस्तत्समानत्वविरोधात् । संसारविच्छितेः किं कारणम् ? द्वादशाङ्गावगमः तत्तीवभक्तिः केवलिसमुद्धातोऽनिवृत्तिपरिणामाश्च । न चैते सर्वेषु सम्भवन्ति दशनवपूर्वधारिणामपि क्षपक
समुद्धात सहेतुक होता है यह प्रथम पक्ष भी नहीं बनता है, क्योंकि, केवलिसमुद्धातका कोई हेतु नहीं पाया जाता है। यदि यह कहा जावे कि तीन अघातिया कर्मों की स्थितिसे आयुकर्मकी स्थितिकी असमानता ही समुद्धातका कारण है, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, क्षीणकषाय गुणस्थानकी चरम अवस्थामें संपूर्ण कर्म समान नहीं होते हैं, इसलिये सभी केवलियोंके समुद्धातका प्रसंग आजायगा।
समाधान- यतिवृषभाचार्यके उपदेशानुसार क्षीणकषाय गुणस्थानके चरम समयमें संपूर्ण अघातिया कमौकी स्थिति समान नहीं होनेसे सभी केवली समुद्धात करके ही मुक्तिको प्राप्त होते हैं। परंतु जिन आचार्योंके मतानुसार लोकपूरण समुद्धात करनेवाले केवलियोंकी वीस संख्याका नियम है, उनके मतानुसार कितने ही केवली समुद्धात करते हैं और कितने नहीं करते हैं।
शंका-कौनसे केवली समुद्धात नहीं करते हैं?
समाधान-जिनकी संसार-व्यक्ति अर्थात् संसारमें रहनेका काल वेदनीय आदि तीन काँकी स्थितिके समान है वे समुद्धात नहीं करते हैं, शेष केवली करते हैं।
शंका-आनिवृत्ति आदि परिणामोंके समान रहने पर संसारव्यक्ति-स्थिति और शेष तीन कर्मोकी स्थितिमें विषमता क्यों रहती है ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, संसारकी व्यक्ति और कर्मस्थितिके घातके कारणभूत अनिवृत्तिरूप परिणामोंके समान रहने पर संसारको उसके अर्थात् तीन कर्मोकी स्थितिके समान मान लेने में विरोध आता है।
शंका-संसारके विच्छेदका क्या कारण है ?
समाधान-द्वादशांगका ज्ञान, उनमें तीव भक्ति, केवलिसमुद्धात और अनिवृत्तिरूप परिणाम ये सब संसारके विच्छेदके कारण हैं। परंतु ये सब कारण समस्त जीवों में संभव नहीं है, क्योंकि, दश पूर्व और नौ पूर्वके धारी जीवोंका भी क्षपकश्रेणी पर चढ़ना देखा जाता
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