Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ३४ ] संत-परूवणाणुयोगद्दारे इंदियमग्गणापरूवणं
[२४९ तस्योपयोगखेन्द्रियत्वात् । न च क्षीणाशेषकर्मसु सिद्धेषु क्षयोपशमोऽस्ति तस्य क्षायिकभावेनापसारितत्वात् ।
एकेन्द्रियविकल्पप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाह- एइंदिया दुविहा, बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता । सुहुमा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता ॥ ३४ ॥
एकेन्द्रियाः द्विविधाः, बादराः सूक्ष्मा इति । बादरशब्दः स्थूलपर्यायः स्थूलत्वं चानियतम्, ततो न ज्ञायते के स्थूला इति । चक्षुर्लाह्याश्चेन, अचााह्याणां स्थूलानां सूक्ष्मतोपपत्तेः । अचक्षुर्लाह्याणामपि बादरत्वे सूक्ष्मवादराणामविशेषः स्यादिति चेन्न, आर्पस्वरूपानवगमात् । न बादरशब्दोऽयं स्थूलपर्यायः, अपि तु बादरनाम्नः कर्मणो वाचकः । तदुदयसहचरितत्वाज्जीवोऽपि बादरः। शरीरस्य स्थौल्यनिर्वर्तकं कर्म बादर
समाधान- नहीं, क्योंकि, क्षयोपशमसे उत्पन्न हुए उपयोगको इन्द्रिय कहते हैं। परंतु जिनके संपूर्ण कर्म क्षीण हो गये हैं, ऐसे सिद्धोंमें क्षयोपशम महीं पाया जाता है, क्योंकि, वह क्षायिक भावके द्वारा दूर कर दिया जाता है।
अब एकोन्द्रिय जीवोंके भेदोंके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
एकेन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं, बादर और सूक्ष्म । बादर एकेन्द्रिय दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म एकेन्द्रिय दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त ॥ ३४॥
एकन्द्रिय जीव बादर और सूक्ष्मके भेदसे दो प्रकारके हैं।
शंका-बादर शब्द स्थूलका पर्यायवाची है, और स्थूलताका स्वरूप कुछ नियत नहीं है, इसलिये यह मालूम नहीं पड़ता है, कि कौन कौन जीव स्थूल हैं। जो चक्षु इन्द्रियके द्वारा ग्रहण करने योग्य हैं वे स्थूल हैं, यदि ऐसा कहा जावे सो भी नहीं बनता है, क्योंक, ऐसा मानने पर, जो स्थूल जीव चक्षु इन्द्रियके द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं हैं उन्हें सूक्ष्मपनेकी प्राप्ति हो जायगी। और जिनका चक्षु इन्द्रियसे ग्रहण नहीं हो सकता है ऐसे जीवोंको बादर मान लेने पर सूक्ष्म और बादरोंमें कोई भेद नहीं रह जाता है ? ।
समाधान- नहीं, क्योंकि, यह आशंका आर्षके स्वरूपकी अनभिज्ञताकी द्योतक है। यह बादर शब्द स्थूलका पर्यायवाची नहीं है, किंतु बादर नामक नामकर्मका वाचक है, इसलिये उस बादर नामकर्मके उदयके संबन्धसे जीव भी बादर कहा जाता है।
शंका-शरीरकी स्थूलताको उत्पन्न करनेवाले कर्मको बादर और सूक्ष्मताको उत्पन्न करनेवाले कर्मको सूक्ष्म कहते हैं। तथापि कि जो चक्षु इन्द्रियके द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं है
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