Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२७८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ४७. शब्द एक एवास्तु सूत्रपरिसमाप्त्यर्थत्वात्, न 'च' शब्दस्तस्य फलाभावादिति चेन्न, तस्य कायमार्गणपरिसमाप्तिप्रतिपादनफलत्वात् ।
योगद्वारेण जीवद्रव्यप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाह
जोगाणुवादेण अस्थि मणजोगी वचिजोगी कायजोगी चेदि ॥४७॥
___अत्र ' इति' शब्दः सूत्रसमाप्तिप्रतिपादनफलः । 'च' शब्दश्च त्रय एव योगाः सन्ति नान्ये इति योगसंख्यानियमप्रतिपादनफलः समुच्चयार्थों वा । योगस्य तल्लक्षणं प्रागुक्तमिति नेदानीमुच्यते । मनसा योगो मनोयोगः । अथ स्यान्न द्रव्यमनसा सम्पन्धो मनोयोगः मनोयोगस्य देशोनत्रयत्रिंशत्सागरकालस्थितिप्रसङ्गात् । न सक्रियावस्था योगः योगस्याहोरात्रमात्रकालप्रसङ्गात् । न भावमनसा सम्बन्धो मनोयोगः तस्य अपेक्षा न होकर कर्म और नोकर्मके निमित्तसे होनेवाले सादि और सान्त प्रदेशप्रचयरूप कायकी अपेक्षा है । इसलिये इस विवक्षासे सिद्ध जीव अकायिक होते हैं, क्योंकि, उनके कर्म और नोकर्मके निमित्तसे होनेवाले प्रदेशप्रचयरूप कायका अभाव हो गया है।
शंका-सूत्रमें ' इति ' यह एक ही शब्द रहा आवे, क्योंकि, उसका फल सूत्रकी परिसमाप्ति है । परंतु 'च' शब्दकी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि, प्रकृतमें उसका कोई प्रयोजन नहीं है?
समाधान- नहीं, क्योंकि, कायमार्गणाकी परिसमाप्तिका प्रतिपादन करना ही यहां पर 'च' शब्दका फल है।
अब योगमार्गणाके द्वारा जीव द्रव्यके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र
योगमार्गणाके अनुवादकी अपेक्षा मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीव होते हैं ॥४७॥
इस सूत्र में जो 'इति' शब्द आया है। उसका फल सूत्रकी समाप्तिका प्रतिपादन करना है । तथा जो 'च' शब्द दिया है उसका फल, योग तीन ही होते हैं, अधिक नहीं, इस प्रकार योगकी संख्याके नियमका प्रतिपादन करना है। अथवा 'च' शब्द
करनेवाला समझना चाहिये। ___ योगका लक्षण पहले कह आये हैं, इसलिये यहां पर नहीं कहते हैं । मनके साथ संबन्ध होनेको मनोयोग कहते हैं।
शंका-पदि ऐसा है, तो द्रव्यमनसे संबन्ध होनेको तो मनोयोग कह नहीं सकते हैं, क्योंकि, ऐसा मानने पर मनोयोगकी कुछ कम तेतीस सागर प्रमाण स्थितिका प्रसंग प्राप्त हो जायगा। क्रियासहित अवस्थाको भी योग नहीं कह सकते हैं, क्योंकि ऐसा मानने पर योगको दिन-रात्रमात्र कालका प्रसंग प्राप्त हो जायगा । अर्थात्, कोई
कहते हैं
समुच्चयरूप अथेका प्रतिपादन कर
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