Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १,४७.]
संत. परूवणाणुयोगद्दारे जोगमग्गणापरूवणं
[ २७९
ज्ञानरूपत्वतः उपयोगान्तर्भावात् इति न त्रितयविकल्पोक्तदोष:, तेषामनभ्युपगमात् । कः पुनः मनोयोग इति चेद्भावमनसः समुत्पत्त्यर्थः प्रयत्नो मनोयोगः । तथा वचसः समुत्पत्यर्थः प्रयत्नो वाग्योगः | कार्यक्रियासमुत्पत्त्यर्थः प्रयत्नः काययोगः । त्रयाणां योगानां प्रवृत्तिरक्रमेण उत नेति ? नाक्रमेण, त्रिष्वक्रमेणैकस्यात्मनो योगनिरोधात् । मनोवाक्कायप्रवृत्तयोऽक्रमेण क्वचिद् दृश्यन्त इति चेद्भवतु तासां तथा प्रवृत्तिर्दृष्टत्वात, न तत्प्रयत्नानामक्रमेण वृत्तिस्तथोपदेशाभावादिति । अथ स्यात्प्रयत्लो हि नाम बुद्धिपूर्वकः, बुद्धिश्च मनोयोगपूर्विका, तथा च सिद्धो मनोयोगः शेषयोगाविनाभावीतिन, • कार्य
कोई क्रिया दिन-रात रहती है, इसलिये एक योगकी स्थिति भी अहोरात्र प्रमाण माननी पड़ेगी । किंतु आगममें तो एक योगकी स्थिति एक अन्तर्मुहूर्तसे अधिक नहीं मानी है । अतः क्रियासहित अवस्था भी योग नहीं हो सकता है । इसीप्रकार भावमनके साथ संबन्ध होने को भी मनोयोग नहीं कह सकते हैं, क्योंकि, भावमन ज्ञानरूप होनेके कारण उसका उपयोग में अन्तर्भाव हो जाता है ?
समाधान - इसप्रकार तीनों विकल्पोंके द्वारा दिये गये दोष प्राप्त नहीं होते हैं, क्योंकि, उक्त तीनों ही विकल्पोंको स्वीकार नहीं किया है ।
शंका -- तो फिर मनोयोगका क्या स्वरूप है ?
समाधान - भावमनकी उत्पत्तिके लिये जो प्रयत्न होता है उसे मनोयोग कहते हैं । उसीप्रकार वचनकी उत्पत्तिके लिये जो प्रयत्न होता है उसे वचनयोग कहते हैं और कायकी क्रियाकी उत्पत्ति के लिये जो प्रयत्न होता है उसे काययोग कहते हैं ।
शंका- तीनों योगों की प्रवृत्ति युगपत् होती है या नहीं ?
समाधान - युगपत् नहीं होती है, क्योंकि, एक आत्माके तीनों योगोंकी प्रवृत्ति युगपत् मानने पर योगनिरोधका प्रसंग आजायगा । अर्थात् किसी भी आत्मा के योग नहीं बन सकेगा ।
शंका- कहीं पर मन, वचन और कायकी प्रवृत्तियां युगपत् देखी जाती है ?
समाधान - यदि देखी जाती हैं, तो उनकी युगपत् वृत्ति होओ। परंतु इससे, मन वचन और कायकी प्रवृत्तिके लिये जो प्रयत्न होते हैं उनकी युगपत् वृत्ति सिद्ध नहीं हो सकती है, क्योंकि, आगममें इसप्रकार उपदेश नहीं मिलता है ।
विशेषार्थ - तीनों योगोंकी प्रवृत्ति एकसाथ हो सकती है, प्रयत्न नहीं ।
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शंका - प्रयत्न बुद्धिपूर्वक होता है, और बुद्धि मनोयोगपूर्वक होती है। ऐसी परिस्थिति में मनोयोग शेष योगोंका अविनाभावी है, यह बात सिद्ध हो जाना चाहिये ? अर्थात् अनेक प्रयत्न एक साथ होते हैं यह बात सिद्ध हो जायगी ?
समाधान — नहीं, क्योंकि, कार्य और कारण इन दोनोंकी एक कालमें उत्पत्ति नहीं हो
सकती
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