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२५० छक्खंडागमे जीवाणं
[१, १, ३४. मुच्यते । सौम्यनिर्वर्तकं कर्म सूक्ष्मम् । तथापि चक्षुषोऽग्राह्यं सूक्ष्मशरीरम् , तद्ग्राह्य बादरमिति तद्वतां तद्वयपदेशो हठादास्कन्देत् । ततश्चक्षुर्लाह्या बादराः, अचक्षुाद्याः सूक्ष्मा इति तेषामेताभ्यामेव भेदः समापतदन्यथा तेषामविशेषतापत्तेरिति चेन्न, स्थूलाश्च भवन्ति चक्षुाह्याश्च न भवन्ति, को विरोधः स्यात् ? सूक्ष्मजीवशरीरादसंख्येयगुणं शरीरं बादरम्, तद्वन्तो जीवाश्च बादराः । ततोऽसंख्येयगुणहीनं शरीरं सूक्ष्मम्, तद्वन्तो जीवाश्च सूक्ष्मा उपचारादित्यपि कल्पना न साध्वी, सर्वजघन्यबादराङ्गात्सूक्ष्मकर्मनिवर्तितस्य सूक्ष्मशरीरस्यासंख्येगुणत्वतोऽनेकान्तात् । ततो बादरकर्मोदयवन्तो बादराः, सूक्ष्मकर्मोदयवन्तः सूक्ष्मा इति सिद्धम् । कोऽनयोः कर्मणोरुदययोर्भेदश्चेन्मूतैरन्यैः प्रतिहन्यमानशरीरनिर्वर्तको बादरकर्मोदयः, अप्रतिहन्यमानशरीरनिर्वर्तकः सूक्ष्मकर्मोदय इति तयोर्भेदैः । सूक्ष्मत्वावह सूक्ष्म शरीर है, और जो उसके द्वारा ग्रहण करने योग्य है वह बादर शरीर है, अतः सूक्ष्म और बादर कर्मके उदयवाले सूक्ष्म और बादर शरीरसे युक्त जीवोंको सूक्ष्म और बादर संज्ञा हठात् प्राप्त हो जाती है । इससे यह सिद्ध हुआ कि जो चक्षुसे ग्राह्य हैं वे बादर है, और जो चक्षुसे अग्राह्य हैं वे सूक्ष्म हैं। सूक्ष्म और बादर जीवोंके इन उपर्युक्त लक्षणोंसे ही भेद प्राप्त हो गया। यदि उपर्युक्त लक्षण न माने जायं, तो सूक्ष्म और बादरोंमें कोई भेद नहीं रह जाता है?
समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि, स्थूल तो हों और चक्षुसे ग्रहण करने योग्य न हों, इस कथनमें क्या विरोध है।
शंका-सूक्ष्म शरीरसे असंख्यातगुणी अधिक अवगाहनावाले शरीरको बादर कहते हैं, और उस शरीरसे युक्त जीवोंको उपचारसे बादर जीव कहते हैं । अथवा, बादर शरीरसे असंख्यातगुणी हीन अवगाहनावाले शरीरको सूक्ष्म कहते हैं, और उस शरीरसे युक्त जीवोंको उपचारसे सूक्ष्म जीव कहते हैं ?
समाधान-यह कल्पना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, सबसे जघन्य बादर शरीरसे सूक्ष्म नामकर्मके द्वारा निर्मित सूक्ष्म शरीरको अवगाहना असंख्यातगुणी होनेसे ऊपरके कथनमें अनेकान्त दोष आता है। इसलिये जिन जीवोंके बादर नामर्कमका उदय पाया जाता है वे बादर हैं, और जिनके सूक्ष्म नामकर्मका उदय पाया जाता है वे सूक्ष्म हैं, यह बात सिद्ध हो जाती है।
शंका-सूक्ष्म नामकर्मके उदय और बादर नामकर्मके उदयमें क्या भेद है ? समाधान- बादर नामकर्मका उदय दूसरे मूर्त पदार्थोसे आघात करने योग्य शरीरको
. १ यदुदयादन्यबाधाकरशरीरं भवति तद् बादरनाम। सूक्ष्मशरीरनिवर्तक सूक्ष्मनाम । गो. क., जी.प्र., टी. ३३. स. सि. ८-११.
२ यदुयाद् जीवानां चक्षुह्यशरीरत्वलक्षणं बादरत्वं भवति तद बादरनाम, पृथिव्यादेरेकैकशरीरस्य चक्षाह्यत्वाभावेऽपि बादरत्वपरिणामविशेषाद् बहूनां समुदाये चक्षुषा ग्रहणं भवति । तद्विपरीतं सूक्ष्मनाम, यदुदयाद बहूनां समुदितानामपि जन्तुशरीराणां चक्षुाह्यता न भवति । क. प्र. पृ.७.
३ बादरसुहुमुदयेण य बादरसुहुमा हवति तदेहा । घादसरीरं थूलं अघाददेहं हवे मुहुमं ॥ गो. जी. १८३.
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