Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ४०. .]
संत - परूवणाणुयोगद्दारे कायमग्गणापरूवणं
[ २६७
I
पुढविकाइया दुविहा, बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता । सुहुमा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता । आउकाइया दुविहा, बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता । सुहुमा दुविहा, पज्जता अपज्जत्ता । तेउकाइया दुविहा, बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता । हुमा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता । वाउकाइया दुविहा, बादरा हुमा । बादरा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जता । सुहुमा दुविहा, पज्जता अपज्जत्ता चेदि ॥ ४० ॥
बादरनामकर्मोदयोपजनितविशेषाः वादराः, सूक्ष्मनामकर्मोदयोपजनितविशेषाः सूक्ष्माः । को विशेषश्चेत् ? सप्रतिघाताप्रतिघातरूपाः । पर्याप्तनामकर्मोदयजनितशक्त्याविर्भावितवृत्तयः पर्याप्ताः । अपर्याप्तनामकर्मोदयजनितशक्त्याविर्भावितवृत्तयः अपर्याप्ताः ।
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पृथिवीकायिक जीव दो प्रकारके हैं, बादर और सूक्ष्म । बादर पृथिवीकायिक जीव दो प्रकार के हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । जलकायिक जवि दो प्रकार के हैं, बादर और सूक्ष्म । बादर जलकायिक जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म जलकायिक जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त | अग्निकायिक जीव दो प्रकारके हैं, बादर और सूक्ष्म । बादर अग्निकायिक जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म अग्निकायिक जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । वायुकायिक जीव दो प्रकारके हैं बादर और सूक्ष्म । बादर वायुकायिक जीव दो प्रकार के हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त। सूक्ष्म वायुकायिक जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त ||४०||
जिनमें बादर नामकर्मके उदयसे विशेषता उत्पन्न हो गई है उन्हें बादर कहते हैं । तथा जिनमें सूक्ष्म नामकर्मके उदयसे विशेषता उत्पन्न हो गई है उन्हें सूक्ष्म कहते हैं।
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शंका- बादर और सूक्ष्ममें क्या विशेषता है ?
समाधान - बादर प्रतिघात सहित होते हैं और सूक्ष्म प्रतिघात रहित होते हैं, यही इन दोनों विशेषता है। अर्थात् निमित्तके मिलनेपर बादर शरीरका प्रतिघात हो सकता है, परंतु सूक्ष्मशरीरका कभी भी प्रतिघात नहीं होता है ।
पर्याप्त नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई शक्तिसे जिन जीव की अपने अपने योग्य पर्याप्तियोंके पूर्ण करनेरूप अवस्था विशेष प्रगट हो गई है उन्हें पर्याप्त कहते हैं । तथा अपर्याप्त नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई शक्तिसे जिन जीवोंकी शरीर पर्याप्ति पूर्ण न करके मरनेरूप अवस्था विशेष उत्पन्न हो जाती है उन्हें अपर्याप्त कहते हैं ।
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