Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२६४ ] छक्खंडागमे जीवाणं
[१, १, ३९. चेदुच्यते । एकेन्द्रियजातिनामकोदयादेकेन्द्रियः, द्वीन्द्रियजातिनामकर्मोदयाद् द्वीन्द्रियः, त्रीन्द्रियजतिनामकर्मोदयात्रीन्द्रियः, चतुरिन्द्रियजातिनामकर्मोदयाच्चतुरिन्द्रियः, पञ्चेन्द्रियजातिनामकर्मोदयात्पञ्चेन्द्रियः । समस्ति च केवलिनामपर्याप्तजीवानां च पञ्चेन्द्रियजातिनामकर्मोदयः। निरवद्यत्वाद् व्याख्यानमिदं समाश्रयणीयम् । पञ्चेन्द्रियजातिरिति किं ? यस्याः पारापतादयो जातिविशेषाः समानप्रत्ययग्राह्या सा पञ्चेन्द्रियजातिः पञ्चेन्द्रियक्षयोपशमस्य सहकारित्वमादधाना ।
अतीन्द्रियजीवास्तित्वप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाह - तेण परमाणिदिया इदि ॥ ३८ ॥
तेनेति एकवचनं जातिनिवन्धनम् । परमूर्धमनिन्द्रियाः एकेन्द्रियादिजात्यतीताः सकलकर्मकलङ्कातीतत्वात् ।।
कायमार्गणाप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाह
कायाणुवादेण अस्थि पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणप्फइकाइया तसकाइया अकाइया चेदि ॥ ३९ ॥
शंका- तो फिर वह दूसरा कौनसा व्याख्यान है जिसे ठीक माना जाय ?
समाधान- एकेन्द्रिय जाति नामकर्मके उदयसे एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय जाति नामकर्मके उदयसे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रियजाति नामकर्मके उदयसे त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियजाति नामकर्मके उदयसे चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियजाति नामकर्मके उदयसे पंचेन्द्रिय जीव होते हैं। इस व्याख्यानके अनुसार केवली और अपर्याप्त जीवोंके भी पंचेन्द्रिय जाति नामकर्मका उदय होता ही है । अतः यह व्याख्यान निर्दोष है। अतएव इसका आश्रय करना चाहिये।
शंका-पंचेन्द्रियजाति किसे कहते हैं ?
समाधान-जिसके कत्तर आदि जाति-विशेष 'ये पंचेन्द्रिय हैं ' इसप्रकार समान प्रत्ययसे ग्रहण करने योग्य होते हैं और जिसमें पंचेन्द्रियावरण कर्मके क्षयोपशमके सहकारीपनेकी अपेक्षा रहती है उसे पंचेन्द्रिय जाति कहते हैं।
अब अतीन्द्रिय जीवोंके अस्तित्वके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंउन एकेन्द्रियादि जीवोंसे परे अनिन्द्रिय जीव होते हैं ॥३८॥
सूत्रमें तेन ' यह एक वचन जातिका सूचक है। 'पर' शब्दका अर्थ ऊपर है। जिससे यह अर्थ हुआ कि एकेन्द्रियादि जातिभेदोंसे रहित अनिन्द्रिय जीव होते हैं, क्योंकि, उनके संपूर्ण द्रव्यकर्म और भावकर्म नहीं पाये जाते हैं।
अब कार्यमार्गणाके प्रतिपादन करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
कायानुवादकी अपेक्षा पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक और कायरहित जीव होते हैं ॥ ३९ ।।
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