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११० छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १,२. सूर-पण्णत्ती' पंच-लक्ख-तिण्णि-सहस्सेहि ५०३००० सूरस्सायु-भोगावभोग-परिवारिद्धिगइ-बिंबुस्सेह-दिण-किरणुओष-चण्णणं कुणइ । जंबूदीवंपण्णत्ती तिण्णि-लक्ख-पंचवीस-पदसहस्सेहि ३२५:०० जंबूदीवे गाणाविह-मणुयाणं भोग-कम्म-भूमियाणं अण्णेसिं च पव्वद-दह-णइ-वेइयाणं वस्सावासाकट्टिम-जिगहरादीणं वण्णणं कुणइ । दीवसायरपण्णत्ती बावण्ण-लक्ख-छत्तीस-पद-सहस्सेहि ५२३६००० उद्धार-पल्लं-पमाणेण दीव-सायर-पमाणं अण्णं पि दीव-सायरंतन्भूदत्थं बहु-भेयं वण्णेदि । वियाहपण्णत्ती णाम चउरासीदि-लक्ख छत्तीस-पद-सहस्सेहि ८४३६००० रूवि-अजीव-दव्यं अरूवि-अजीव-दव्वं भवसिद्धियअभवसिद्धिय-रासिं च वण्णेदि । सुत्तं अट्ठासीदि लक्ख-पदेहि ८८००००० अबंधओ अवलेवओ अकत्ता अभात्ता णिग्गुणो सव्वगओ अणुमेत्तो णत्थि जीवो जीवो चेव आत्थि पुढवियादीणं समुदएण जीवो उप्पजइ णिच्चेयणो णाणेण विणा सचेयणो
परिवार, ऋद्धि, गति और बिम्बकी उंचाई आदिका वर्णन करता है। सूर्यप्राप्ति नामका परिकमे पांच लाख तीन हजार पदोंके द्वारा सूर्यकी आयु, भोग, उपभोग, परिवार, ऋाद्ध, गति, बिम्बकी उंचाई, दिनकी हानि-वृद्धि, किरणोंका प्रमाण और प्रकाश आदिका वर्णन करता है। जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति नामका परिकर्म तीन लाख पच्चीस हजार पदोंके द्वारा जम्द्वीपस्थ भोगभूमि और कर्मभूमिमें उत्पन्न हुए नानाप्रकारके मनुष्य तथा दूसरे तिर्यच आदिका और पर्वत, द्रह, नदी, वेदिका, वर्ष, आवास, अकृत्रिम जिनालय आदिका वर्णन करता है। द्वीपसागरप्राप्ति नामका परिकर्म बावन लाख छत्तीस हजार पदोंके द्वारा उद्धारपल्यसे द्वीप और समुद्रोंके प्रमाणका तथा द्वीपसागरके अन्तर्भूत नानाप्रकारके दूसरे पदार्थोंका वर्णन करता है। व्याख्याप्राप्ति नामका परिकर्म चौरासी लाख छत्तीस हजार पदोंके द्वारा रूपी अजविद्रव्य अर्थात् पुद्गल, अरूपी अजीवद्रव्य अर्थाद् धर्म, अधर्म, आकाश और काल, भव्यसिद्ध और अभव्यासिद्ध जीव, इन सबका वर्णन करता है,
दृष्टिवाद अंगका सूत्र नामका अधिकार अठासी लाख पदोंके द्वारा जीव अबन्धक ही है, अवलेपक ही है, अकर्ता ही है, अभोक्ता ही है, निर्गुण ही है, अणुप्रमाण ही है, जीव नास्तिस्वरूप ही है, जीव अस्तिस्वरूप ही है, पृथिवी आदिक पांच भूतोंके समुदायरूपसे जीव उत्पन्न होता है, चेतना रहित है, शानके विना भी सचेतन है, नित्य ही है, अनित्य ही है,
१ सूर्यप्रज्ञा
लपरिवारऋद्धिगमनप्रमाणग्रहणादीन् वर्णयति । गो. जी., जी.प्र., टी. ३६१. ६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिः जम्बूद्वीपगतमेरुकुलशैलहृदवर्षकुंडवेदिकावनखंडव्यंतरावासमहानयादीन् वर्णयति ।
गो. जी., जी.प्र., टी. ३६२. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति असंख्यातद्वीपसागराणी स्वरूपं तत्रस्थितज्योतिर्वानभावनावासेषु विद्यमानाकृत्रिमजिनभवनादीन् वर्णयति । गो. जी., जी.प्र., टी. १६२.
४ रूप्यरूपिजीवाजीवद्रव्याणां भव्याभव्यभेदप्रमाण लक्षणानां अनंतरसिद्धपरम्परासिद्धानां अग्यवस्तूनां च वर्णनं करोति । गो. जी. जी. प्रः, टी. ३६२.
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