Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ३३. ]
संत- परूवणाणुयोगद्दारे इंदियमग्गणापरूवणं
इदानीं मनुष्याणां गुणद्वारेण सादृश्यासादृश्यप्रतिपादनार्थमाहमणुस्सा मिस्सा मिच्छाइट्टिप्प हुडि जाव संजदासंजदा ति ॥३१॥ आदितश्चतुर्षु गुणस्थानेषु ये मनुष्यास्ते मिथ्यात्वादिभिश्चतुर्भिर्गुणैस्त्रिगतिजीवैः समानाः संयमासंयमेन तिर्यग्भिः ।
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ते परं सुद्धा मणुस्सा ॥ ३२ ॥
शेषगुणानां मनुष्यगतिव्यतिरिक्तगतिष्वसम्भवाच्छेषगुणा मनुष्येष्वेव सम्भवन्ति उपरितनगुणैर्मनुष्याः न कैश्चित्समाना इति यावत् । देवनरकगत्योः सादृश्यमसादृश्यं वा किमिति नोक्तमिति चेन्न, आभ्यामेव प्ररूपणाभ्यां मन्दमेधसामपि तदवगमोत्पत्तेरिति ।
इन्द्रियमार्गणायां गुणस्थानान्वेषणार्थमुत्तरसूत्रमाह
इंदियाणुवादेण अत्थि एइंदिया बीइंदिया तीइंदिया चदुरिंदिया पंचिंदिया अणिंदिया चेदि ॥ ३३ ॥
रचा गया है।
अब मनुष्यों की गुणस्थानोंके द्वारा समानता और असमानता के प्रतिपादन करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
मिथ्यादृष्टियों से लेकर संयतासंयततकके मनुष्य मिश्र हैं ॥ ३१ ॥
प्रथम गुणस्थान से लेकर चार गुणस्थानों में जितने मनुष्य हैं वे मिथ्यात्वादि चार गुणस्थानों की अपेक्षा तीन गतिके जीवोंके साथ समान हैं और संयमासंयमगुणस्थानकी अपेक्षा तिर्यचों के साथ समान है ।
पांचवें गुणस्थानसे आगे शुद्ध (केवल ) मनुष्य हैं ॥ ३२ ॥
प्रारम्भके पांच गुणस्थानों को छोड़कर शेष गुणस्थान मनुष्यगति के विना अन्य तीन गतियोंमें नहीं पाये जाते हैं, इसलिये शेष गुणस्थान मनुष्यों में ही संभव हैं । अतः छटवें आदि ऊपरके गुणस्थानों की अपेक्षा मनुष्य अन्य तीन गतिके किन्हीं जीवोंके साथ समानता नहीं रखते हैं । यह इस सूत्रका तात्पर्य समझना चाहिये ।
शंका - देव और नरकगतिके जीवोंकी अन्य गतिके जीवोंके साथ समानता और असमानताका कथन क्यों नहीं किया ?
समाधान - अलग कथन करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि, तिर्यंच और मनुष्य संबन्धी प्ररूपणाओंके द्वारा ही मन्दबुद्धि जनोंको भी देव और नारकियों की दूसरी गतिवाले जीवों के साथ सदृशता और असदृशताका ज्ञान हो जाता है ।
अब इन्द्रियमाणा गुणस्थानों के अन्वेषण के लिये आगेका सूत्र कहते हैंइन्द्रियमार्गणाकी अपेक्षा एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय जीव होते हैं ॥ ३३ ॥
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