Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२४ छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, १, २. तस्स उवक्कमो पंचविहो, आणुपुव्वी णामं पमाण वत्तव्यदा अत्थाहियारो चेदि । तत्थ आणुपुव्वी तिविहा, पुव्वाणुषुव्वी पच्छाणुपुव्वी जत्थतत्थाणुपुची चेदि । एत्थ पुन्वाणुपुबीए गणिज्जमाणे पंचमादो, पच्छाणुपुवीए गणिज्जमाणे दसमादो, जत्थतत्थाणुपुबीए गणिज्जमाणे चयणलद्धीदो। णामं चयण-विहिं लद्धि-विहिं च वण्णेदि तेण चयणलद्धि त्ति गुणणाम । पमाणमक्खर-पद-संघाद-पडिवत्ति-अणियोगद्दारेहि संखेज्जमत्थदो अणंतं । वत्तव्यदा ससमयवत्तव्यदा । अत्याधियारो वीसदिविहो । एत्थ किं पढम-पाहुडादो, किं विदिय-पाहुडादो ? एवं पुच्छा सव्वेसिं णेयव्वा । णो पढमपाहुडादो णो विदिय-पाहुडादो, एवं वारणा सव्वेसि गेयव्या । चउत्थ-पाहुडादो । तस्स उवक्कमो पंचविहो, आणुपुबी णामं पमाणं वत्तव्वदा अत्थाहियारो चेदि । तत्थ आणुपुवी तिविहा, पुवाणुपुबी पच्छाणुपुब्बी जत्थतत्थाणुपुची चेदि । पुव्वाणुपुबीए गणिजमाणे चउत्थादो, पच्छाणुपुबीए गणिजमाणे सत्तारसमादो, जत्थतत्थाणुपुबीए गणिजमाणे कम्मपयडिपाहुडादो । णामं कम्माणं पयडि-सरूवं वण्णेदि तेण कम्मपयडिपाहुडे ति गुणणामं । वेयणकसिणपाहुडे त्ति वि तस्स विदियं णाममत्थि ।
उपक्रम पांच प्रकारका है, आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार । पूर्वानुपूर्वी, पश्चादानपर्वी और यथातथानुप-के भेदसे आनुपूर्वी तीन प्रकारकी है। उन तीनोंमसे, यहां. पर पूर्वानुपूर्वीसे गिनती करने पर पांचवें अर्थाधिकारसे, पश्चादानुपूर्वीसे गिनती करने पर दशवें अर्थाधिकारसे और यथातथानुपूर्वीसे गिनती करने पर चयनलब्धि नामके अर्थाधिकारसे प्रयोजन है। यह अर्थाधिकार चयनविधि और लब्धिविधिका वर्णन करता है, इसलिये चयनब्धि यह गोण्यनाम है। अक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्ति और अनुयोगरूपःद्वारोंकी अपेक्षा संख्यात तथा अर्थकी अपेक्षा अनन्तप्रमाण है। स्वसमयका कथन करनेवाला होनेके कारण यहां पर खसमयवक्तव्यता है। चयनलब्धिके अर्थाधिकार वीस प्रकारके हैं। उनमेंसे यहां क्या प्रथम प्राभृतसे प्रयोजन है, क्या दूसरे प्राभृतसे प्रयोजन है ? इसतरह सबके विषयमें पृच्छा करनी चाहिये। यहां पर प्रथम प्राभृतसे प्रयोजन नहीं है, दूसरे प्राभृतसे प्रयोजन नहीं है, इसप्रकार सबका निषेध कर देना चाहिये । किन्तु यहां पर चौथे प्राभृतसे प्रयोजन है, ऐसा उत्तर देना चाहिये।
___उसका उपक्रम पांच प्रकारका है, आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार। उनमेंसे, पूर्वानुपूर्वी, पश्चादानुपूर्वी और यथातथानुपूर्वीके भेदसे आनुपूर्वी तीन प्रकारकी है। यहां पर पूर्वानुपूर्वीसे गिनती करने पर चौथे प्राभृतसे, पश्चादानुपूर्वीसे गिनती करने पर सत्रहवें प्राभृतसे और यथातथानुपूर्वीसे गिनती करने पर कर्मप्रकृतिप्राभृतसे प्रयोजन है। यह कर्मोंकी प्रकृतियोंके स्वरूपका वर्णन करता है, इसलिये कर्मप्रकृतिप्राभृत यह गोण्यनाम है। इसका , वेदनाकृत्स्नमाभृत' यह दूसरा नाम भी है। कर्मोंके उदयको वेदना कहते हैं। उसका यह
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